तुम अब भी हो
ट्रेन पहले ही सोलह घंटे लेट हो चुकी थी| विह्वल सा आकाश बार बार घड़ी देखे जा रहा था| व्हाट्स एप पर हर मिनट एक ही मेसेज भेजे जा रहा था,''कैसी हो''
अब जवाब आना भी बन्द हो गया था| पास बैठे बुजुर्ग सहयात्री तक को उसकी आकुलता समझ में आ रही थी|
''बेटे, अब तो पाँच मिनट में ट्रेन पहुँचने ही वाली है| तुम इतने परेशान क्यों हो|''
''बाबा, मेरी आशु आई सी यू में है और चन्द घंटे ही बचे हैं उसकी जीवन लीला खत्म होने में| हम दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं बाबा| मैं जाते जाते उसकी माँग में सिंदूर भरना चाहता हूँ ताकि वह सुहागन बनकर इस दुनिया से जाए| फिर मैं पूरी जिंदगी उसकी याद में बिता दूँगा', बोलते हुए आकाश ने एक सिंदूर की डिबिया निकाली और भर्राकर रो पड़ा|
ट्रेन में भी माहौल कुछ भारी सा हो गया| तब तक जंक्शन पर गाड़ी लग चुकी थी|
तुरंत टैक्सी कर के आकाश अस्पताल की ओर भागा| चूँकि आशु का जाना तय था इसलिए डॉक्टर ने सबको मिलने की छूट दे दी थी| आकाश ने पहुँचते ही आशु का हाथ अपने हाथ में ले लिया|
''आशु, यहाँ तुम्हारे और मेरे पापा- मम्मी और सब भाई- बहन मौजूद हैं| मैं सबके सामने तुम्हारी माँग भरना चाहता हूँ,'' कहते हुए आकाश ने डिबिया निकाली किन्तु आशु ने महीन आवाज में धीरे धीरे कहा,''मैं जाते जाते रिश्तों में नहीं बँधना चाहती आकाश| मुझे याद तो रखोगे न'', अब आशु की आँखों में कोई बूँद न थी, बस प्रेम था जो छलक रहा था|
आकाश ने कुछ पल सोचा और थके कदमों से पास ही बैठी आशू की दृष्टिबाधित बहन नयना के पास गया|
''नयना, क्या तुम मेरी पत्नी बनना स्वीकार करोगी|''
नयना की आँखों से अविरल धार बह निकली|
आकाश ने आशु की ओर देखा| एक सुकून पसरा हुआ था वहाँ|
आकाश की चुटकी का सिंदूर नयना की माँग को सजा चुका था|
''देखो आशु, तुम अब हमेशा मेरे पास रहोगी'', कहते हुए आकाश ने आशू की ओर देखा किन्तु वह प्रेम दीवानी तो अपने दीवाने को छोड़कर जा चुकी थी|
--ऋता शेखर 'मधु'
ट्रेन पहले ही सोलह घंटे लेट हो चुकी थी| विह्वल सा आकाश बार बार घड़ी देखे जा रहा था| व्हाट्स एप पर हर मिनट एक ही मेसेज भेजे जा रहा था,''कैसी हो''
अब जवाब आना भी बन्द हो गया था| पास बैठे बुजुर्ग सहयात्री तक को उसकी आकुलता समझ में आ रही थी|
''बेटे, अब तो पाँच मिनट में ट्रेन पहुँचने ही वाली है| तुम इतने परेशान क्यों हो|''
''बाबा, मेरी आशु आई सी यू में है और चन्द घंटे ही बचे हैं उसकी जीवन लीला खत्म होने में| हम दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं बाबा| मैं जाते जाते उसकी माँग में सिंदूर भरना चाहता हूँ ताकि वह सुहागन बनकर इस दुनिया से जाए| फिर मैं पूरी जिंदगी उसकी याद में बिता दूँगा', बोलते हुए आकाश ने एक सिंदूर की डिबिया निकाली और भर्राकर रो पड़ा|
ट्रेन में भी माहौल कुछ भारी सा हो गया| तब तक जंक्शन पर गाड़ी लग चुकी थी|
तुरंत टैक्सी कर के आकाश अस्पताल की ओर भागा| चूँकि आशु का जाना तय था इसलिए डॉक्टर ने सबको मिलने की छूट दे दी थी| आकाश ने पहुँचते ही आशु का हाथ अपने हाथ में ले लिया|
''आशु, यहाँ तुम्हारे और मेरे पापा- मम्मी और सब भाई- बहन मौजूद हैं| मैं सबके सामने तुम्हारी माँग भरना चाहता हूँ,'' कहते हुए आकाश ने डिबिया निकाली किन्तु आशु ने महीन आवाज में धीरे धीरे कहा,''मैं जाते जाते रिश्तों में नहीं बँधना चाहती आकाश| मुझे याद तो रखोगे न'', अब आशु की आँखों में कोई बूँद न थी, बस प्रेम था जो छलक रहा था|
आकाश ने कुछ पल सोचा और थके कदमों से पास ही बैठी आशू की दृष्टिबाधित बहन नयना के पास गया|
''नयना, क्या तुम मेरी पत्नी बनना स्वीकार करोगी|''
नयना की आँखों से अविरल धार बह निकली|
आकाश ने आशु की ओर देखा| एक सुकून पसरा हुआ था वहाँ|
आकाश की चुटकी का सिंदूर नयना की माँग को सजा चुका था|
''देखो आशु, तुम अब हमेशा मेरे पास रहोगी'', कहते हुए आकाश ने आशू की ओर देखा किन्तु वह प्रेम दीवानी तो अपने दीवाने को छोड़कर जा चुकी थी|
--ऋता शेखर 'मधु'
प्रेम में त्याग का समाहित होना ही उसकी ख़ूबसूरती है।
जवाब देंहटाएं''मैं जाते जाते रिश्तों में नहीं बँधना चाहती आकाश| मुझे याद तो रखोगे न'' ये शब्द किसी प्रेयसी के प्रेम को सर्वोच्चता प्रदान करते हैं।
अत्यंत मार्मिक एवं प्रेरक प्रस्तुति।
लघुकथा की अपनी मर्यादा है ,साख है जिसे पूरा करती है यह प्रस्तुति।
बधाई।
बहुत ही सुंदर विचार ,बहुत सुंदर लघु रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
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