गुरुवार, 4 जुलाई 2019

जिन काँधों पर चढ़कर झूले-ललित छंद


विधा- ललित छंद (सार छंद)...
16-12 पर यति अंत में वाचिक भार 22,
कुल चार चरण, दो-दो चरण में तुकांत अनिवार्य है.

नेह-सिक्त निर्मल धारा से , मिलती कंचन काया |
अम्बर जैसा प्यार पिता का, शीतल माँ का साया ||
जाने कितने दुख सुख सहकर, तिनका तिनका जोड़े|
ऊँची शिक्षा की खातिर ही, निज सपनों को तोड़े ||

जिन काँधों पर चढ़कर झूले, चौंसठ में झुकते हैं |
एक सहारा पाने को वे, पग पग पर रुकते हैं ||
सन्नाटों के मौन तिमिर में, दो निरीह जगते हैं |
टिक-टिक के संग श्वास-ध्वनि मिल, साथी सा लगते हैं ||2||

तन निःशक्त हुआ है जबसे, झेल रही लाचारी |
दूरभाष भी दूर पड़ा है, ले कैसे बेचारी ||
दवा मिली आहार नदारद, वह कैसे जीएगी |
डॉलर की अनकही कहानी, घूँट घूँट पीएगी ||3||


यूँ  देखो तो यह दुनिया बस, लगता है इक मेला |
पर जिनको तुम छोड़ गए हो, वह तो पड़ा अकेला ||
अनियंत्रित जीवन रेखा का, अनियंत्रण है जारी |
साहब बनकर घूम रहे हो, माँ बिस्तर पर हारी ||4||

आखें मूँद रही थी जब वह, तुम्हें कहाँ पाती थी |
चढ़कर दूजों के कंधों पर, मंजिल को जाती थी ||
मस्त रहो और स्वस्थ रहो तुम, आशिष देकर गाती|
यादों में जाकर जब लौटी, तर्पण अश्रु का लाती ||5||

तुम जग जीत चले थे लेकिन, जीते ना अपनो को |
गाँव द्वार को ठोकर मारे, लेकर निज सपनों को ||
छोड़ तिरंगा बने विदेशी, देश हुआ बेगाना |
अपने अपनो की खातिर तुम, लौट यहाँ फिर आना ||6||

----ऋता शेखर ‘मधु’

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