सोमवार, 9 सितंबर 2019

लगता नया नया हर पल है

गीत
जाना जीवन पथ पर चलकर
लगता नया नया हर पल है

धरती पर आँखें जब खोलीं
नया लगा माँ का आलिंगन
नयी हवा में नयी धूप में
नये नये रिश्तों का बंधन

शुभ्र गगन में श्वेत चन्द्रमा
लगता बालक सा निश्छल है

नया लगा फूलों का खिलना
लगा नया उनका झर जाना
मौसम की आवाजाही में
फिर से बगिया का भर जाना

आम्रकुंज की खुशबू पाकर
बढ़ती कोयल में हलचल है
लगा नया लहरों का आना
आकर फिर से वापस जाना

नए नए सीपों को चुनकर
गहराई की थाह लगाना
करे नहीं परवाह पंक की
खिलता नया नया शतदल है

है नवीन लेखन की बातें
नया सफर नयी मुलाकातें
हर दिन का सूरज नया नया
नया स्वप्न ले आतीं रातें

नए इरादे नयी समस्या
नया ढूँढता कोई हल है

ऋता शेखर म
धु

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-09-2019) को     "स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन"  (चर्चा अंक- 3454)  पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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