बुधवार, 28 मई 2014

वट सावित्री पूजा...


पूजा की थाली
रोली अक्षत सिन्दूर
फल पंखे मौलि
लेकर चली ब्याहता
खुद भी सजी
महावर रचाए
नथ टीका बिंदी सजाए
वट वृक्ष की ओर
माँगेगी दुआ 
पति की लम्बी उम्र के लिए
क्योंकि सावित्री ने माँगा था प्राण
पति सत्यवान के लिए

ऐश्वर्या जा रही
समर्पित पति की
समर्पित पत्नी
बुधिया जा रही
पियक्कड़ पति
रोज मारता है उसे
कमली जा रही
परित्यक्ता है वो
राजनंदिनी जा रही
महल में कैद है वो
पंछी जा रही
उसके कमाए पैसों पर
पति का अधिकार है
सुरंगमा जा रही
मीठे सुरों की मालकिन
पर मीठे बोल
कोई सुन न पाए
पति का पहरा
राजेश्वरी जा रही
पत्नी बनाम नौकरानी
कोकिला जा रही
घर की मुर्गी दाल जैसी
बाहर की मुर्गी पर
पति की लोलुप नजर


सभी हँसती हुई
चली जा रही
क्योंकि 
परम्परा निभानी है
चाहे जैसा भी है
वह  पति तो है
दुआएँ पाने का 
हक है उसे
और पत्नियाँ
भई.... भारतीय पत्नियाँ हैं
भारतीयता की लाज तो रखनी है न !!!
...ऋता

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. बहुत खूब...सुन्दर कथ्य व सन्देश...

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  3. यथार्थ का साक्षात कराती , मनभावन रचना को अभिनन्दन
    सादर आमंत्रित है !
    www.whoistarun.blogspot.in

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