गुरुवार, 24 नवंबर 2011

४.श्रीराम की बाल लीला-ऋता की कविता में

आज मैं श्रीराम कथा की चौथी कविता लेकर प्रस्तुत हूँ|आपकी छोटी से छोटी प्रतिक्रिया भी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हे|

श्रीराम की बाललीला


जगत के स्वामी  अन्तर्यामी  अनुग्रहदानी रघुनाथ|
अवतार लिए रघुकुल में हुलस पड़े पिता और मात||

कौशल्या दशरथ कर जोड़े बोले, अहोभाग्य हमारे|
अपने  वचन  की  खातिर प्रभु, हमारे घर पधारे||

जनक जननी जन के स्नेहवश,बाललीला करते थे श्रीराम|
देख-देख पुलकित होते अवध-जन, छोड़  के  सब  काम||

वात्सल्य प्रेम में आनन्दित होती थीं कौशल्या माता|
कभी नहीं सोची थीं, यूँ गोद में खेलेगे जग-विधाता||

कभी पालने में कभी गोद में खिलातीं|
कभी नजर भर-भर लला को निहारतीं||

दिवस  रात्रि  पहर का, रहा न भान और ज्ञान|
बालक राम की लीला का ही, करती रहतीं गान||
 
एक दिवस माता ने करवाया, राम  को  स्नान|
लिटा पालने में रसोई गई, बनाना था पकवान||

इष्ट-देव को भोग लगा किया हृदय से ध्यान|
लौटीं  वापस  पाकगृह  में  रह  गई हैरान||

बैठ रसोई में आराम से, खाते थे श्रीराम|
दौड़  पालने  में  देखा, सो रहे थे राम||

पुनः  रसोईघर में देखा, विराजमान  थे  राम|
हृदय काँप उठा उनका,रहा न धैर्य  का  भान|
पहेली समझ न पाई, कैसे दोनों जगह हैं राम||

अपना मतिभ्रम मान के,कौशल्या हो गई आकुल|
मुस्कुरा दिए श्रीराम, देखा जो माता को व्याकुल||

श्रीराम  ने दिखलाया, अनूठा विराट रूप अपना|
आश्चर्यचकित देखें कौशल्या, सत्य है या सपना||

प्रत्येक  रोम में थे शोभित,  कोटि-कोटि  ब्रह्मांड|
सूर्य चन्द्र पर्वत समुद्र नदी वन पृथ्वी शंकर ब्रह्मा||

थे वहाँ  काल  कर्म, गुण ज्ञान स्वभाव|
कल्पना से भी परे,अनेक प्रकार के भाव||

भयभीत कर जोड़े खड़ी थीं,  बलवती माया|
माया से मुक्त कराने वाली, भक्ति की काया||

तन मन से पुलकित हो, माता ने शीश नवाया|

ऐसी लीला से आप मुझे,फिर कभी न सताना|
हाथ  जोड़ विनती करूँ, बाल-रूप  में  रहना||

विस्मित माता को रामलला ने बार-बार समझाया|
जगतपिता  श्रीराम  ने फिर से, बाल रूप बनाया||

समय के साथ बड़े हुए, अपार लीला करते सब भाई
चूड़ाकर्म संस्कार में, ब्राह्मणों  ने  ढेरों  दक्षिणा पाई||

ठुमक-ठुमक चलने लगे, माता से पकड़े नहीं जाते|
धूल-धुसरित  हो वे जब, घर  को  वापस  आते||

दशरथ हँस-हँस उनको, गोद  में  बिठाते|
बड़े स्नेह से नन्हे को, दही भात खिलाते||

निगाह चूके, किलकारी  मार श्रीराम भाग जाते|
सरस्वती शेष महेश, मनभावन बालचरित गाते||

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ऋता शेखर मधु

14 टिप्‍पणियां:

  1. आनंद आ गया राम ही राम है हो गया सब जगह ...

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  2. बहुत ही आनन्ददायी प्रसंग है आज सुबह ही पढा था और अब यहाँ भी पढ लिया।

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  3. ऋता शेखर ‘मधु’ जी
    जय श्री राम !

    आज तो आपके यहां आनंद-वर्षण हो रहा है …
    सरस्वती शेष महेश, मनभावन बालचरित गाते
    … और आपने भी रामजी की बाल लीला का चित्रण बहुत मनोयोग से किया है … साधुवाद !

    ऐसी रचनाओं में छंद की एकरूपता और परिपक्वता का महत्व बढ़ जाता है …

    सृजन जारी रहना चाहिए … श्रेष्ठता-विशिष्टता स्वतः आने लगती हैं …

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. आदरणीय दिगम्बर जी, वंदना जी,अनुपमाजी,संगीता जी, विनीत जी एवं राजेंन्द्र जी,
    उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार|
    सादर
    ऋता शेखर

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  5. बहुत बढ़िया ! शानदार प्रस्तुती!

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  6. आदरणीया मधु जी,

    श्री राम की बाल लीला का चित्रण पढ़ कर मन आनंद से भर गया .
    आपने माँ कौशल्या के साथ बाल लीला का शब्दों से जो चित्र खींचा है ,उसे पढ़ कर आनंद के आंसू झरने लगे.
    धन्य है आपकी कलम.

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  7. उत्तम दृष्य प्रस्तुत किया...बधाई.

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  8. सुन्दर प्रस्तुति ऋता जी.....बधाई.

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  9. आदरणीय रश्मि जी,बबली जी,विशाल जी,समीर जी एवं मंजु जी,
    उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार|
    सादर
    ऋता शेखर

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  10. श्री राम जी की बाल्य-लीला को
    बहुत ही अनुपम ढंग से प्रस्तुत किया है आपने
    शिल्प बहुत प्रभाव शाली है
    बधाई स्वीकारें .

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  11. ओह! बहुत सुन्दर राम की बाल लीला का वर्णन किया है आपने,ऋता जी.आपकी पावन लेखनी को नमन.

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