ओ धरा-सी वामा तू सुन,
गीले नयनों को नियति न मान
अपने आँसुओं का कर ले निदान
स्वयं को साबित करने की ठान
चल पड़ी तो राह होगा आसान|
तेरा यह क्रंदन है व्यर्थ
जीती है तू सबके तदर्थ
तू खुद को बना इतना समर्थ
तेरे जीने का भी हो अर्थ|
जिस सृष्टि का तूने किया निर्माण
उसी सृष्टि में मत होने दो अपना अपमान|
तेरे भी अधिकार हैं सबके समान
नारी तू महान थी, महान है, रहेगी महान|
आज की नारी
नारी व्यथा की बातें हो गईं पुरानी
नए युग में बदल रही है कहानी|
बनती हैं अब वह घर का आधार
पढ़ें-लिखें करें पुरानी प्रथा निराधार|
बेटियाँ होती हैं अब घर की शान
उन्हें भी पुत्र समान मिलता है मान|
किशोरियों की होती है नई नई आशा
उनके गुणों को भी जाता है तराशा|
प्रमाण पत्रों पर होता माता का भी नाम
बदले युग में है यह नारी का सम्मान|
नारी शिक्षा पर है अब सभी का ध्यान
सरकारों के चलते हैं नए नए अभियान|
प्रमाण पत्रों पर होता माता का भी नाम
बदले युग में है यह नारी का सम्मान|
नारी शिक्षा पर है अब सभी का ध्यान
सरकारों के चलते हैं नए नए अभियान|
अब नारी के होंठ हँसते हैं
खुशी से पैर थिरकते हैं
सपने विस्तृत गगन में उड़ते हैं
इच्छाएँ पसन्द की राह चुनते हैं|
नारियों के मुख पर नहीं छाई है वीरानी
वक्त बदल गया,अब बदल गई है कहानी|
ऋता शेखर’मधु’
अच्छा भला आवाहन ||
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ऋता जी....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना के लिए बधाई...
Gahari Abhivykti...Sarthak Sandesh....
जवाब देंहटाएंहाल-फिलहाल 'नारी-दिवस' के कारण कई कवितायें मिली पढने को जिसमें सिर्फ नारी की व्यथा ही वर्णित थी. मन में अक्सर ख़याल आ रहा था कि ऐसा नहीं है, बदलाव आ रहा है, बहुत हद तक परिदृश्य अलग है अब.
जवाब देंहटाएंआपकी सकारात्मक पंक्तियों से तसल्ली मिली.
सादर
बहुत सुंदर सार्थक रचना, बेहतरीन प्रस्तुति.......
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST ...काव्यान्जलि ...:बसंती रंग छा गया,...
नारी को स्वयंसिद्धा ही होना होगा ... दोनों रचनाएँ सुंदर
जवाब देंहटाएंबेटियाँ होती हैं अब घर की शान
जवाब देंहटाएंउन्हें भी पुत्र समान मिलता है मान
बहुत सुंदर और प्रेरक रचना।
शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar ...rita ji .
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सामयिक और सार्थक पोस्ट, आभार.
जवाब देंहटाएंये बदली हुयी कहानी भारत के कोने कोने में पहुंचे तो सही मायने में बदलाव आ सकता है ...
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