http://thalebaithe.blogspot.in/2013/07/sp229.html#comment-form
ठाले बैठे ब्लाग पर मेरे कुछ दोहे प्रकाशित हुए थे जिन्हें ऊपर ले लिंक पर देखा जा सकता है...
वहा़ पर आदरणीय अरुण निगम सर ने मेरे प्रत्एक दोहे के लिए प्रतिक्रियास्वरूप एक दोहा लिखा...उन्हे इस ब्लौग पर साभार सहेज रही हूँ...साथ में सौरभ पाण्डेय सर की प्रतिक्रिया भी प्राप्त हुई थी ...उसे भी साभार दे रही हूँ...
ऋता- सद्गुणियों के संग से, मनुआ बने मयंक
ज्यों नीरज का संग पा, शोभित होते पंक
@कमल मलिन कब है सुना, निर्मल बसता ताल
पंक स्वयम् ही बोलता, यह गुदड़ी का लाल
ऋता- चंदा चंचल चाँदनी, तारे गाएँ गीत
पावस की हर बूँद पर, नर्तन करती प्रीत
@बूँद समुच्चय जब झरे,झर-झर झरता प्यार
बूँद समुच्चय जो फटे, मचता हाहाकार
ऋता- शुभ्र नील आकाश में, नीरद के दो रंग
श्वेत करें अठखेलियाँ, श्याम भिगावे अंग
@श्वेत साँवरे घन घिरे,लेकिन अपना कौन
गरजे वह बरसे नहीं, जो बरसे वह मौन
ऋता- हिल जाना भू-खंड का, नहीं महज संजोग
पर्वत भी कितना सहे, कटन-छँटन का रोग
@पकड़-जकड़ रखते मृदा,जड़ से सारे झाड़
ज्यों-ज्यों वन कटते गये, निर्बलहुये पहाड़
ऋता- महँगाई के राज में, बढ़े इस तरह दाम
लँगड़ा हो या मालदा, रहे नहीं अब आम
@आम खड़ा मन मार कर, दूर पहुँच से दाम
लँगड़ा खीसा हो गया,दौड़े लँगड़ा आम
ठाले बैठे ब्लाग पर मेरे कुछ दोहे प्रकाशित हुए थे जिन्हें ऊपर ले लिंक पर देखा जा सकता है...
वहा़ पर आदरणीय अरुण निगम सर ने मेरे प्रत्एक दोहे के लिए प्रतिक्रियास्वरूप एक दोहा लिखा...उन्हे इस ब्लौग पर साभार सहेज रही हूँ...साथ में सौरभ पाण्डेय सर की प्रतिक्रिया भी प्राप्त हुई थी ...उसे भी साभार दे रही हूँ...
ऋता- सद्गुणियों के संग से, मनुआ बने मयंक
ज्यों नीरज का संग पा, शोभित होते पंक
@कमल मलिन कब है सुना, निर्मल बसता ताल
पंक स्वयम् ही बोलता, यह गुदड़ी का लाल
ऋता- चंदा चंचल चाँदनी, तारे गाएँ गीत
पावस की हर बूँद पर, नर्तन करती प्रीत
@बूँद समुच्चय जब झरे,झर-झर झरता प्यार
बूँद समुच्चय जो फटे, मचता हाहाकार
ऋता- शुभ्र नील आकाश में, नीरद के दो रंग
श्वेत करें अठखेलियाँ, श्याम भिगावे अंग
@श्वेत साँवरे घन घिरे,लेकिन अपना कौन
गरजे वह बरसे नहीं, जो बरसे वह मौन
ऋता- हिल जाना भू-खंड का, नहीं महज संजोग
पर्वत भी कितना सहे, कटन-छँटन का रोग
@पकड़-जकड़ रखते मृदा,जड़ से सारे झाड़
ज्यों-ज्यों वन कटते गये, निर्बलहुये पहाड़
ऋता- महँगाई के राज में, बढ़े इस तरह दाम
लँगड़ा हो या मालदा, रहे नहीं अब आम
@आम खड़ा मन मार कर, दूर पहुँच से दाम
लँगड़ा खीसा हो गया,दौड़े लँगड़ा आम
नवीन भाईजी के सौजन्य से ही ऋता शेखर मधु के बारे में सुना-जाना.
आभार नवीन भाईजी.
मन का आकाश सुभावनाओं के घने मेघों से अच्छादित हुआ संतृप्त हो जाय तो सरस अनुभूतियों की झींसियाँ अनवरत झहरती रहतीं हैं ! रस-विभोर हृदय मनसायन हुआ मद्धिम तरंगों से झंकृत होता रहता है.. अनवरत !
ऐसे में सहजता विस्फारित आँखों मनोरम रंगों को अनायास आकार लेता देखती है. उन्हें छूती है और बूझने का निर्दोष प्रयास करती है. इसी सहजता को वर्तमान ने ऋतु शेखर मधु का नाम दिया है.
आज के दिन इस प्रकृतिप्रिया को अग्रज की ओर से जन्मदिन की अनेकानेक शुभकामनाएँ--
शब्द-भाव कोमल मृदुल मधुरस ऋतुपग छंद
विह्वलता अन्वेषमय, आवेशित मकरंद
छंद-रचना पर ढेर सारी बधाइयाँ.
शुभ-शुभ
आभार नवीन भाईजी.
मन का आकाश सुभावनाओं के घने मेघों से अच्छादित हुआ संतृप्त हो जाय तो सरस अनुभूतियों की झींसियाँ अनवरत झहरती रहतीं हैं ! रस-विभोर हृदय मनसायन हुआ मद्धिम तरंगों से झंकृत होता रहता है.. अनवरत !
ऐसे में सहजता विस्फारित आँखों मनोरम रंगों को अनायास आकार लेता देखती है. उन्हें छूती है और बूझने का निर्दोष प्रयास करती है. इसी सहजता को वर्तमान ने ऋतु शेखर मधु का नाम दिया है.
आज के दिन इस प्रकृतिप्रिया को अग्रज की ओर से जन्मदिन की अनेकानेक शुभकामनाएँ--
शब्द-भाव कोमल मृदुल मधुरस ऋतुपग छंद
विह्वलता अन्वेषमय, आवेशित मकरंद
छंद-रचना पर ढेर सारी बधाइयाँ.
शुभ-शुभ
- ठेस-टीसReply
धिया, जँवाई ले गये, वह, उन की सौगात
बेटे, बहुओं के हुये, चुप देखें पित-मात-ऋता
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सास यही कल थी बहू,यही पिता था पूत
बोये पेड़ बबूल के , चाह रहे शहतूत | - उम्मीद
बूढ़ी आँखें है विकल, कब आएगा लाल
रात कटे उम्मीद में, अब पूछेगा हाल - ऋता
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मरने भी देती नहीं ,उम्मीदों की डोर
रातें ढाढस बाँधती , धीर बँधाते भोर |सौन्दर्य"गर्भवती मुख-रूप" का, कैसे करूँ बखानरविकर जैसा तेज, पर, शीतल चंद्र समान- ऋता*******************************"गर्भवती मुख-रूप" की, सुंदरतम तस्वीरसंग-संग खिलते दिखें,मुखपर अरुण सुमीर| - आश्चर्य
अजब अजूबों से भरा, ब्रह्मा का संसार
कोमल जिह्वा क्रोध में, उगल पड़े अंगार - ऋता
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लपट नहीं दिखती कभी,और न उठता धूम्र
सुनने वाला आग में , जलता सारी उम्र |
ये जुगलबंदी ही लाजवाब है ...
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