सूक्ष्म से साकार तक
आत्मा से परमात्मा तक
मुर्छा से चेतना तक
नई अनुभूतियाँ
कई विसंगतियाँ
सहेजता अंत:करण
कहीं पुष्प की रंगिनियाँ
या कंटकों की है चुभन
कहीं अट्टहास उल्लास है
या अंतस में भरा रुदन
अंतहीन सी राह पर
मंजिल की कोई थाह नहीं
अनवरत चलते रहो
अनवरत जीवन सफ़र
उभर रही संवेदना
लिए हृदय में वेदना
अपेक्षाओं के सिलसिले
शिकवों से भरे दिल मिले
यही काल का चक्र है
कहीं सीधा कहीं वक्र है
प्रेम सीख कर जो चलें
हो जाएँ रस्ते सरल
जीव जन्म का सत्व यही
जीवन का अमरत्व यही|
..........ऋता
बहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
मने हम का कहें , निचोड़ तो अंतिम पंक्तियाँ दे गई. मृत्युमाँ अमृतम गमय .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजीव जी !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती रचना , गर फुरशत हो तो मेरे ब्लॉग "बेनकाब " पर
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव लिए रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन....
:-)
पूराथोड़े शब्दोंमे जिंदगी निचोड़ -बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मन्दिर या विकास ?
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
भावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंप्रेम ही जीवन का सच है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ..
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंवाह !! बहुत सुंदर भाव लिए रचना बहुत बधाई , ऋता शेखर मधु जी ।
जवाब देंहटाएंप्रेम ही सर्व है .. प्रेम ही सकल है साकार है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना |
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