मन पाखी पिंजर छोड़ चला
मन पाखी पिंजर छोड़ चला।
तन से भी रिश्ता तोड़ चला ।।
जीवन की पटरी टूट गयी ।
माया की गठरी छूट गयी ।
अब रहा न कोई साथी है,
मंजिल पर मटकी फूट गयी।।
निष्ठुरता से मुँह मोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।
जीवन घट डूबा उतराया ।
माँझी कोई पार न पाया ।
शक्ति थी पँखों में जबतक,
भर उड़ान सबको भरमाया ।।
ईश्वर से नाता जोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।
लक्ष्य सदा ही पाना होगा ।
जाना है तो जाना होगा ।
कितने जन्मों का फेरा है,
पूछ लौटकर आना होगा ।।
दर्पण को दंभी फोड़ चला ।
मन पाखी पिंजर छोड़ चला ।।
ऋता शेखर 'मधु'
आभार शास्त्री सर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील जी !
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी !
हटाएंईश्वर से नाता जोड़ चला ।
जवाब देंहटाएंमन पाखी पिंजर छोड़ चला ।
बहुत बढ़िया
धन्यवाद हिंदी गुरूजी
हटाएंवाह , ऋता .बहुत सामयिक और मार्मिक कविता .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गिरिजा जी, उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभार !
हटाएंप्रवाहयुक्त सरल सुन्दर गीत .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया !
हटाएंबहुत सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएं