*अँधियारी रातों का साथी,बनकर साथ निभाना प्रियवर।
रोज नए दीपों की माला, राहों पर धर जाना प्रियवर।
अँधियारी रातों का साथी, बनकर साथ निभाना प्रियवर।।
जिनके दृग की ज्योति छिन गई
मन उनका रौशन कर देना।
रंगोली जिस द्वार मिटी है
रंगों की छिटकन भर देना।।
ख्वाबों के मोती चुन चुन कर, तोरण एक बनाना प्रियवर।
अँधियारी रातों का साथी, बनकर साथ निभाना प्रियवर।।
तारों की अवली से रजनी
अपनी माँग सजाकर आती।
गहन बादलों के पीछे से
चपल दामिनी रूप दिखाती।।
सूरज की तपती किरणों पर ,ओस बूँद न मिटाना प्रियवर।
अँधियारी रातों का साथी, बनकर साथ निभाना प्रियवर।।
निश्छल मन पर हुए वार से
जग में लाखों दर्पण टूटे।
प्रभु की लीला समझ न आई
नासमझी में अर्पण छूटे।।
नन्हे दीपक की बाती में,आस बिम्ब लहराना प्रियवर।
अँधियारी रातों का साथी, बनकर साथ निभाना प्रियवर।।
सबके चैन अमन की खातिर
सरहद पर वे जान गँवाये।
विधवा मन की सूनी बगिया
पारिजात फिर कहाँ से पाये।।
मुर्छित होते घर के ऊपर, सघन वृक्ष बन छाना प्रियवर।
अँधियारी रातों का साथी, बनकर साथ निभाना प्रियवर।।
ऋता शेखर 'मधु'
सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत मनोहारी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंउम्दा गीत
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