हे विनायक एकदंता !
इस जगत को सार दे दो ||
क्यों भरा हिय में हलाहल, क्यों दिखे बिखरे कपट छल|
सोच में संस्कार दे दो, सतयुगी अवतार दे दो ||
हे गजानन बुद्धिदाता !
ज्ञान का विस्तार दे दो ||
इस जगत को सार दे दो ||१
खो रहीं संवेदनाएँ, भूलती मधुरिम ऋचाएँ |
साज को झंकार दे दो, वर्ण को ओंकार दे दो ||
हे चतुर्भुज देवव्रत प्रभु !
सृष्टि को आधार दे दो ||
इस जगत को सार दे दो ||२
देखते दिन-रात सपना, हो गुरू यह देश अपना |
योग का आचार दे दो, वेद का सत्कार दे दो ||
भीम भूपति विघ्नहर्ता !
स्वप्न का साकार दे दो ||
इस जगत को सार दे दो || ३
सत्य की भी साधना हो, धर्म की आराधना हो |
प्रीत का उद्गार दे दो, सुरमई संसार दे दो ||
हे मनोमय मुक्तिदायी !
अल्प को आकार दे दो ||
इस जगत को सार दे दो ||४
@ ऋता शेखर ‘मधु’
२१२२*४
अद्भुत वंदना!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय !
हटाएंजय गणेश जी को नमन ,बहुत ही ज्यादा सुंदर गणेश स्तुति ,नमन आपको
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी !
हटाएंबहुत खूब...जय गणेश।
जवाब देंहटाएंजय गणेश...धन्यवाद!
हटाएंजय जय
जवाब देंहटाएंजय गणेश!
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रही, गणेश जी वन्दना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार शास्त्री सर !
हटाएंसुंदर वंदना !!!💐
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