शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

मानस पटल...















मानस पटल...

मानस पटल की दो बहनें
एक है आशा एक निराशा
साथ साथ वे चलती थीं
बंधन भी था बड़ा अटूट

जीवन का था प्रश्न जटिल
सुलझाने में हुई मुश्किल
दोनों में हो रहा संवाद
हर्ष मिले या मिले अवसाद

आशा आशापरक रही
निराशा मन की बनी कुटिल
एक राह को सीधी रखती
एक उसे कर देती वक्र

उथल पुथल मचता जब मन में
त्वरित गति होती धड़कन में
सही गलत बस मन ही जाने
सीमा भी मन ही पहचाने

आस-निराश दो तट हैं जानो
अश्रु को भाव की धारा मानो
विलय कहाँ होना है इसको
शांत चित से ही तुम ठानो|
............ऋता

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर....
    चित्त शांत रहे बस.......

    सस्नेह
    अनु

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  2. बहुत सुन्दर...............मानस पटल की दो बहने

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  3. आशा और निराशा के बीच का द्वंद तो चलता रहता है ...
    भावमय प्रस्तुति ...

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  4. ये दो बहनें हमेशा साथ हि रहती हैं..भावमय प्रस्तुति ...

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  5. अति सुन्दर …। गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती लाजवाब पोस्ट |

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  6. bahut sundar abhivyakti hai Hrita....man ke andar chalte dwand ka...badhai...tareef ke liye shabd kam padte hain...

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