इसमे एक हाइकु की अंतिम पंक्ति दूसरे हाइकु की प्रथम पंक्ति है
१.
जोशीले पग
वतन के रक्षक
रुकें न कभी|
२.
रुकें न कभी
धड़कन दिलों की
सूर्य का रथ|
३.
सूर्य का रथ
उजालों की सवारी
धरा की आस|
४.
धरा की आस
नभ से मिली नमी
उर्वर हुई|
५.
उर्वर हुई
सुनहरी बालियाँ
स्वर्ण जेवर|
६.
स्वर्ण जेवर
झनके झन झन
वधु-कंगना|
७.
वधु कंगना
झूम उठे अँगना
घर की शोभा|
८.
घर की शोभा
मर्यादा का बंधन
गृह रक्षित|
९.
गृह रक्षित
देहरी पर दादा
अनुशासन|
१०.
अनुशासन
घर का आभूषण
घर चमके|
११.
घर चमके
अमृत वाणी बूँद
सदा अमर|
.......ऋता शेखर 'मधु'
वाह !
जवाब देंहटाएंअच्छा नवीन प्रयोग |अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट लघु कथा
बहुत खूब ... लाजवाब हैं सभी हाइकू ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,लोहड़ी कि हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंमकर संक्रांति की सभी मित्रों व पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं !
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