सोमवार, 13 जनवरी 2014

मेरे हाइकु-जोशीले पग


इसमे एक हाइकु की अंतिम पंक्ति दूसरे हाइकु की प्रथम पंक्ति है

१.

जोशीले पग
वतन के रक्षक
रुकें न कभी|


२.

रुकें न कभी

धड़कन दिलों की

सूर्य का रथ|

३.
सूर्य का रथ
उजालों की सवारी
धरा की आस|

४.
धरा की आस
नभ से मिली नमी
उर्वर हुई|

५.
उर्वर हुई
सुनहरी बालियाँ
स्वर्ण जेवर|

६.
स्वर्ण जेवर
झनके झन झन
वधु-कंगना|

७.
वधु कंगना
झूम उठे अँगना
घर की शोभा|

८.
घर की शोभा
मर्यादा का बंधन
गृह रक्षित|

९.
गृह रक्षित
देहरी पर दादा
अनुशासन|

१०.
अनुशासन
घर का आभूषण
घर चमके|

११.
घर चमके
अमृत वाणी बूँद
सदा अमर|
.......ऋता शेखर 'मधु'

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ... लाजवाब हैं सभी हाइकू ...

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,लोहड़ी कि हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. बहुत खूब,सुंदर प्रस्तुति...!
    मकर संक्रांति की सभी मित्रों व पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं !
    RECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,

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