नेग
ड्राइंगरूम मिडिया वालों से भरा था। प्रसिद्ध समाजसेविका सुषमा जी एवम् उनकी नवविवाहिता बहु को रु ब रु होना था।
पन्द्रह दिन पहले ही सुषमा जी का पुत्र निचली जाति की लड़की को ब्याह लाया था। सुषमा जी ने दिल पर पत्थर रखकर बहु का स्वागत किया। सुखी संपन्न घर में बहु को सुख सुविधा की कोई कमी नहीं थी। घर के लोग भी नई बहु के साथ सहज थे। नई बहु की चुल्हा छुलाई की रस्म भी हो चुकी थी। उस दिन सबने बहु के हाथ की बनी खीर खाई किन्तु सुषमा जी ने तबियत खराब का बहाना बना कर खीर नहीं खाई। बिना खाये ही वह गले से चेन उतारकर बहु को नेग देने लगीं।
" मम्मी जी, मैं यह नेग बाद में लूँगी," कहकर बहु ने आदर के साथ चेन लौट दिया।
उस दिन के बाद भी जब वह कुछ भी अपने हाथों से बनाकर लाती, सुषमा जी किसी न किसी बहाने टाल जातीं ।
पन्द्रह दिन पहले ही सुषमा जी का पुत्र निचली जाति की लड़की को ब्याह लाया था। सुषमा जी ने दिल पर पत्थर रखकर बहु का स्वागत किया। सुखी संपन्न घर में बहु को सुख सुविधा की कोई कमी नहीं थी। घर के लोग भी नई बहु के साथ सहज थे। नई बहु की चुल्हा छुलाई की रस्म भी हो चुकी थी। उस दिन सबने बहु के हाथ की बनी खीर खाई किन्तु सुषमा जी ने तबियत खराब का बहाना बना कर खीर नहीं खाई। बिना खाये ही वह गले से चेन उतारकर बहु को नेग देने लगीं।
" मम्मी जी, मैं यह नेग बाद में लूँगी," कहकर बहु ने आदर के साथ चेन लौट दिया।
उस दिन के बाद भी जब वह कुछ भी अपने हाथों से बनाकर लाती, सुषमा जी किसी न किसी बहाने टाल जातीं ।
निचली जाति की बहु को अपनाने का आदर्श समाज में स्थापित हो चुका था। मीडिया वाले समाज को अच्छा सन्देश देना चाहते थे इसलिए वे दोनों साक्षात्कार देने वाली थीं।
सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ।
सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ।
" जब आप ब्याहकर आईं तो घरवालों का व्यवहार कैसा था।"
" जी, बहुत अच्छा। सबने बहुत प्यार से अपनाया मुझे। "
" जाति को लेकर किसी तरह का भेदभाव महसूस किया आपने।"
"बिल्कुल नहीं।"
"सुषमा जी आपके हाथों का बना खाना कहती है।"
जिस सवाल का डर था वह सामने आ चुका था। सुषमा जी के माथे पर पसीना चुहचुहा गया।
" जी, बिलकुल खाती हैं। माँ अपनी बेटी के हाथों का खाना क्यों न खायेंगी भला।" सुनकर सुषमा देवी की आँखें भर आयीं।
मीडिया वाले ख़ुशी ख़ुशी चले गए।
मीडिया वाले ख़ुशी ख़ुशी चले गए।
"बहु, तुमने आज जो सेवइयां बनाई है, लाकर देना जरा।"
कमरे की और जाती बहु ठिठक गई।
कमरे की और जाती बहु ठिठक गई।
सुषमा जी के पति ने चुहल किया,"तुम्हारी जात भ्रष्ट हो जायेगी।"
तब तक बहु कटोरा लिए आ चुकी थी और चुपचाप खड़ी थी।
तब तक बहु कटोरा लिए आ चुकी थी और चुपचाप खड़ी थी।
"दो बेटी", सुषमा जी ने हाथ बढ़ाया।
"मम्मी जी, पहले नेग।"
ठहाकों की गर्मी से जाति रुपी बर्फ की परत पिघल रही थी।
---ऋता शेखर मधु
झूठ...
---ऋता शेखर मधु
झूठ...
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 जुलाई 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-07-2016) को "इस जहाँ में मुझ सा दीवाना नहीं" (चर्चा अंक-2399) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आज की ब्लॉग बुलेटिन मोमबत्ती की याद तभी आती है,जब अंधकार होता है मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार !
कड़वाहट आसानी से घुल सकती है , बेहतरीन सन्देश देते हुए बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
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