नया साल ले आ गया
धवल सलोना प्रात
गया वर्ष लिखता रहा
अनुभव के अनुपात
चल कमली कोहरे के पार
वहाँ सजा है अपना खेत
खुद से खुद ही आगे बढ़ जा
झँझवाती से अब तो चेत
भोर किरण देने लगी
खुशियों की सौगात
हम ऐसे मजबूर हुए
कुछ अपने भी दूर हुए
गम की काली चादर फेंक
रमिया अब तू रोटी सेंक
जीवन में करना सदा
उम्मीदों की बात
करो प्रदीप्त प्रेम की ज्वाला
मुँह में सबके पड़े निवाला
सुनो सुहासी तोड़ो फूल
परे हटाओ निर्मम शूल
पलकों पर जाकर रुके
सपनों की बारात
मन का संबल मन की जीत
मन हरसे तो रच दे गीत
ओ जमनी, बन मीठी धारा
घुट घुट कर क्यों होना खारा
आँचल में अधिकार मिले
अटल रहे अहिवात
- ऋता शेखर ‘मधु’
धवल सलोना प्रात
गया वर्ष लिखता रहा
अनुभव के अनुपात
चल कमली कोहरे के पार
वहाँ सजा है अपना खेत
खुद से खुद ही आगे बढ़ जा
झँझवाती से अब तो चेत
भोर किरण देने लगी
खुशियों की सौगात
हम ऐसे मजबूर हुए
कुछ अपने भी दूर हुए
गम की काली चादर फेंक
रमिया अब तू रोटी सेंक
जीवन में करना सदा
उम्मीदों की बात
करो प्रदीप्त प्रेम की ज्वाला
मुँह में सबके पड़े निवाला
सुनो सुहासी तोड़ो फूल
परे हटाओ निर्मम शूल
पलकों पर जाकर रुके
सपनों की बारात
मन का संबल मन की जीत
मन हरसे तो रच दे गीत
ओ जमनी, बन मीठी धारा
घुट घुट कर क्यों होना खारा
आँचल में अधिकार मिले
अटल रहे अहिवात
- ऋता शेखर ‘मधु’
नववर्ष मंगलमय हो ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-01-2017) को "नए साल से दो बातें" (चर्चा अंक-2575) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंनव बर्ष की शुभकामनाएं
http://savanxxx.blogspot.in