ग़ज़ल
जरा भर लो निगाहों में कि उल्फ़त और बढ़ती है
हया आए जो मुखड़े पर तो रंगत और बढ़ती है
निगहबानी खुदा की हो तो जीवन ये महक जाए
मुहब्बत हो बहारों से इबादत और बढ़ती है
मुसीबत राह में आई मिले हमदर्द भी हरदम
खिलाफ़त आँधियाँ करतीं तो हिम्मत और बढ़ती है
जमाने में शराफ़त की शिकायत भी लगी होने
ज़लालत की इसी हरकत से नफ़रत और बढ़ती है
फ़िजा महफ़ूज़ होगी तब कटे ना जब शज़र कोई
हवा में ताज़गी रहती तो सेहत और बढ़ती है
--ऋता शेखर 'मधु'
जरा भर लो निगाहों में कि उल्फ़त और बढ़ती है
हया आए जो मुखड़े पर तो रंगत और बढ़ती है
निगहबानी खुदा की हो तो जीवन ये महक जाए
मुहब्बत हो बहारों से इबादत और बढ़ती है
मुसीबत राह में आई मिले हमदर्द भी हरदम
खिलाफ़त आँधियाँ करतीं तो हिम्मत और बढ़ती है
जमाने में शराफ़त की शिकायत भी लगी होने
ज़लालत की इसी हरकत से नफ़रत और बढ़ती है
फ़िजा महफ़ूज़ होगी तब कटे ना जब शज़र कोई
हवा में ताज़गी रहती तो सेहत और बढ़ती है
--ऋता शेखर 'मधु'
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आपकी इस प्रस्तुति की लिंक 26-01-2017को चर्चा मंच पर चर्चा - 2585 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
शुक्रिया विर्क जी !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद मालती जी !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 27 जनवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दिग्विजय जी !
हटाएंवाह क्या बात है ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत बढ़िया ॠता जी !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद साधना जी !
हटाएंसहज, सरल और प्रवाहपूर्ण कविता. 'उल्फत' के स्थान पर 'उल्फ़त' और 'जलालत' के स्थान पर 'ज़लालत'कर दीजिए.
जवाब देंहटाएंजी, एडिट कर दिया है| आभार आपका सर !
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-01-2017) को "लोग लावारिस हो रहे हैं" (चर्चा अंक-2586) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ।
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