उत्तरायण हुए भास्कर
भक्त नहाए गंग
उम्मीदों की डोर से
उड़ा लो आज पतंग
रग रग में जागी है ऊर्जा
शिशिर गया है खिल
एहसासों के गुड़ में लिपटे
सोंधे सोंधे तिल
थक्के थक्के में दही जमे
लिए गुलाबी रंग
किसका माँझा किससे तेज
आसमान में ठनी लड़ाई
इसका पेंच या उसका पेंच
बढ़ी काटने की चतुराई
पोहा खिचड़ी तिलछड़ी में
उमग रही उमंग
मौसम बदला रिश्ते बदले
ग्राह पकड़ता गज के पैर
पलक झपकते किसी बात पर
अपने भी हो जाते गैर
फन काढ़ता लोभ मोह का
सोया हुआ भुजंग
रामखिलावन बुधिया के घर
लेकर जाता कड़क रेवड़ी
सासू माँ बिटिया रानी की
दिखा रही है अजब हेकड़ी
मकर काल में सूर्य भ्रमण
फड़काता है अंग
खरमास का अवसान हो रहा
अब शुभ मुहुर्त आने को है
दिन बढ़ना रातों का घटना
राग फाग का छाने को है
देख थाल में शगुन का कँगन
कम्मो होती दंग
इसका पेंच या उसका पेंच
बढ़ी काटने की चतुराई
पोहा खिचड़ी तिलछड़ी में
उमग रही उमंग
मौसम बदला रिश्ते बदले
ग्राह पकड़ता गज के पैर
पलक झपकते किसी बात पर
अपने भी हो जाते गैर
फन काढ़ता लोभ मोह का
सोया हुआ भुजंग
रामखिलावन बुधिया के घर
लेकर जाता कड़क रेवड़ी
सासू माँ बिटिया रानी की
दिखा रही है अजब हेकड़ी
मकर काल में सूर्य भ्रमण
फड़काता है अंग
खरमास का अवसान हो रहा
अब शुभ मुहुर्त आने को है
दिन बढ़ना रातों का घटना
राग फाग का छाने को है
देख थाल में शगुन का कँगन
कम्मो होती दंग
उम्मीदों की डोर से
उड़ा लो आज पतंग
--ऋता शेखर ‘मधु’
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.1.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2582 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंउम्मीदों की डोर से
जवाब देंहटाएंउड़ा लो आज पतंग
सुन्दर रचना।