समस्या
सुबह सुबह कमरे से आती खुसरफुसर की आवाज उनके कानों में पड़ रही थी|
''आज शाम को बॉस ने पार्टी में बुलाया है| जाना अत्यंत आवश्यक है| मैं तुम्हे बैंक से ही पिकअप कर लूँगा रमा| बॉस की बात है तो कुछ पहले जाना ही पड़ेगा ताकि उनकी मदद कर उनपर अपना इम्प्रेशन जमा सकूँ| अगले महीने ही प्रमोशन की लिस्ट निकलने वाली है|''
''किन्तु माँजी की व्यवस्था करनी होगी न संदीप| पार्टी से लौटते हुए देर भी हो सकती है| घर आकर खाना भी बनाना होगा माँजी के लिए|''
''अरे हाँ, ये तो सोचा ही नहीं| ठीक है मैं अकेले ही चला जाऊँगा| किन्तु तुम भी चलती तो...खैर जाने दो''
रसोई में बरतनों के खटपट की आवाज आने लगी| रमा चाय की कप लेकर सास के कमरे में पहुँची|
''बहू, आज मेरा व्रत है| मैं कुछ नहीं खाऊँगी| घर में जो फल है वही खा लूँगी|''
रमा के चेहरे पर की खुशी को उन्होंने भली भाँति महसूस किया|
''संदीप, समस्या खुद ही सुलझ गई| आज माँजी का व्रत है|''
संदीप ने हिंदी महीने का कैलेंडर देखा| माँ द्वारा किए जाने वाले सभी व्रत से वह वाकिफ़ था| फिर आज कौन सा व्रत है यह देखने गया| कोई व्रत नहीं था| रमा की खुशी देखकर वह कुछ कहने की हिम्मत न जुटा सका|
रसोई से आती आवाज सुनकर उन्होंने नमी को पलकों पर ही थाम लिया|
--ऋता शेखर 'मधु'
समझदार माँ कहें या फिर मजबूर मां
जवाब देंहटाएंये समझ से बाहर है
सादर