सोरठा
हर पूजन के बाद, जलता है पावन हवन।
खुशबू से आबाद,खुशी बाँटता है पवन।।1
प्रातःकाल की वायु , ऊर्जा भर देती नई।
बढ़ जाती है आयु, मिट जाती है व्याधियाँ।।2
छाता जब जब मेह, श्यामवर्ण होता गगन।
भरकर अनगिन नेह, पवन उसे लेकर चला।।3
शीतल मंद समीर, तन को लगता है भला।
बढ़ी कौन सी पीर, विरहन के मन ही रही।।4
खत में लिखकर प्रेम,छोड़ गया खिड़की खुली।
सही नहीं है ब्लेम, उसे उड़ा ले जब हवा।।5
झूम उठी है डाल, हवा सहेली थी मिली।
देखो हुआ धमाल, पत्ते कुछ उड़ने लगे।।6
सुप्त हुई जब आग, छुपी हुई थी राख में।
सुना हवा का राग, धधक पड़ी वह जागकर।।7
पढ़े वेद जो चार, ज्ञानी माने यह जगत।
जिनमें भाव अपार, ईश उन्हें जाने भगत।8
जब बोते हैं फूल, खिलने से खुशबू खिले।
रोप रहे जो शूल, कैसे दिल से दिल मिले।।9
कर लालच का कर्म, अंतर्मन क्योंकर छले।
छोड़ नीति का धर्म, कहो मनु किस राह चले।10
पैसा हो या राम,जगत में दो भाव बड़े।
एक करे निष्काम,एक दिखावा में पड़े।।11
हर पूजन के बाद, जलता है पावन हवन।
खुशबू से आबाद,खुशी बाँटता है पवन।।1
प्रातःकाल की वायु , ऊर्जा भर देती नई।
बढ़ जाती है आयु, मिट जाती है व्याधियाँ।।2
छाता जब जब मेह, श्यामवर्ण होता गगन।
भरकर अनगिन नेह, पवन उसे लेकर चला।।3
शीतल मंद समीर, तन को लगता है भला।
बढ़ी कौन सी पीर, विरहन के मन ही रही।।4
खत में लिखकर प्रेम,छोड़ गया खिड़की खुली।
सही नहीं है ब्लेम, उसे उड़ा ले जब हवा।।5
झूम उठी है डाल, हवा सहेली थी मिली।
देखो हुआ धमाल, पत्ते कुछ उड़ने लगे।।6
सुप्त हुई जब आग, छुपी हुई थी राख में।
सुना हवा का राग, धधक पड़ी वह जागकर।।7
पढ़े वेद जो चार, ज्ञानी माने यह जगत।
जिनमें भाव अपार, ईश उन्हें जाने भगत।8
जब बोते हैं फूल, खिलने से खुशबू खिले।
रोप रहे जो शूल, कैसे दिल से दिल मिले।।9
कर लालच का कर्म, अंतर्मन क्योंकर छले।
छोड़ नीति का धर्म, कहो मनु किस राह चले।10
पैसा हो या राम,जगत में दो भाव बड़े।
एक करे निष्काम,एक दिखावा में पड़े।।11
@ ऋता शेखर 'मधु'
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जवाब देंहटाएंआदरणीय सर, गल्ती से आपका कमेंट डेलीट हो गया है| कल २६/०८ को आपने चर्छा मंच पर यह लिंक देंगे ,इसके लिए हार्दिक आभार| यह मैं पढ़ ही रही थी कि टच स्क्रीन से भूल से डीलीट हो गया|
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