सोरठे
स्वप्न हुए साकार, जब कर्म की राह चले।
गंगा आईं द्वार, उनको भागीरथ मिले ।।1
नारी का शृंगार, बिन्दी पायल चूड़ियाँ।
पहन स्वप्न का हार, नभ मुठ्ठी में भर चलीं।।2
नन्हें नन्हें ख़्वाब, नन्हों के मन में खिले।
बोझिल हुए किताब, ज्यों ज्यों वे वजनी हुए।।3
लिए हाथ में हाथ, पथिक चले चुपचाप दो।
मिला बड़ों का साथ, स्वप्न सभी पूरे हुए।।4
धूप छाँव का सार, शनै शनै मिलता गया।
सपनों का संसार, मन बगिया में जा बसा।।5
सपनों में अवरोध, पैदा जब कर दे जगत।
हटा हृदय से क्रोध, चले चलो निज राह पर।6
पाना हो सुख चैन, समय प्रबंधन कीजिये।
शयन काल है रैन, दिन में व्यर्थ न लीजिये।।7
लिख लिख प्रभु के गीत, हर्षित होती लेखनी।
कर कान्हा से प्रीत, अक्षर अक्षर जी उठे।।8
धन दौलत को जोड़, जाने क्या सुख पा रहे।
जाना है तन छोड़, याद इसे रखना पथिक।।9
झुके झुके से नैन, जाने कितना कुछ कहे।
झूठ करे बेचैन, या प्रीत के गीत गहे।।10
परम् सत्य है सत्व, जीवन जीने के लिए।
उन्हें मिले देवत्व, करुण भाव में जो बहे।।11
--ऋता शेखर' मधु'
स्वप्न हुए साकार, जब कर्म की राह चले।
गंगा आईं द्वार, उनको भागीरथ मिले ।।1
नारी का शृंगार, बिन्दी पायल चूड़ियाँ।
पहन स्वप्न का हार, नभ मुठ्ठी में भर चलीं।।2
नन्हें नन्हें ख़्वाब, नन्हों के मन में खिले।
बोझिल हुए किताब, ज्यों ज्यों वे वजनी हुए।।3
लिए हाथ में हाथ, पथिक चले चुपचाप दो।
मिला बड़ों का साथ, स्वप्न सभी पूरे हुए।।4
धूप छाँव का सार, शनै शनै मिलता गया।
सपनों का संसार, मन बगिया में जा बसा।।5
सपनों में अवरोध, पैदा जब कर दे जगत।
हटा हृदय से क्रोध, चले चलो निज राह पर।6
पाना हो सुख चैन, समय प्रबंधन कीजिये।
शयन काल है रैन, दिन में व्यर्थ न लीजिये।।7
लिख लिख प्रभु के गीत, हर्षित होती लेखनी।
कर कान्हा से प्रीत, अक्षर अक्षर जी उठे।।8
धन दौलत को जोड़, जाने क्या सुख पा रहे।
जाना है तन छोड़, याद इसे रखना पथिक।।9
झुके झुके से नैन, जाने कितना कुछ कहे।
झूठ करे बेचैन, या प्रीत के गीत गहे।।10
परम् सत्य है सत्व, जीवन जीने के लिए।
उन्हें मिले देवत्व, करुण भाव में जो बहे।।11
--ऋता शेखर' मधु'
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