रविवार, 22 दिसंबर 2019

दोहों के प्रकार 2- सुभ्रमर दोहा

दोहों के प्रकार पर कार्यशाला 2 - सुभ्रमर दोहा
दोहों के तेईस प्रकार होते है।
वैसे 13-11के शिल्प से दोहों की रचना हो जाती है जिनमें प्रथम और तृतीय चरण का अंत लघु गुरु(12) से तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण का अंत गुरु लघु(21) से होता है।दोहे में कुल 48 मात्राएँ होती हैं।
आंतरिक शिल्प की बात करें तो दोहे 23 प्रकार के होते हैं । हर शिल्प के लिए दोहों के अलग-अलग नाम हैं। ये सज्जा एवं नाम गुरु वर्णों के अवरोह क्रम में रखे गए हैं।मेरी कोशिश है कि हर प्रकार के कुछ दोहे लिख सकूँ तथा मित्रों को भी बता सकूँ। इसी कोशिश में दूसरा प्रकार आप सभी के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।इन दोहों की समीक्षा प्रार्थित है। पिछली कार्यशाला में प्रकाशित भ्रमर दोहों का थोड़ा रूपांतरण करके सुभ्रमर बनाया है जिससे समझने में आसानी हो।यहाँ प्रथम चरण में चौथे गुरु को दो लघु किया गया है, बाकी सारे यथास्थान हैं।
सुभ्रमर दोहा-
21 गुरु 6 लघु=48
22211212,222221
2222212,222221

पानी भोजन श्वास में, है प्राणी का सार।
पौधों पेड़ों ने रचे, जीवन का आधार।।

काया दौलत के बिना, सूना है संसार।
वाणी योगी साधना, ले जाएँगे पार।।

झूमी गाकर जिंदगी, ले फूलों का साथ।
माथे माथे हों सजे, कान्हा जी के हाथ।।

ऊर्जा से भरपूर हैं, खाते-पीते लोग।
हीरे को हीरा मिले, हो ऐसा संजोग।।

फूलों से खुशबू मिली, खानों से सौगात।
चंदा से है चाँदनी, पेड़ों से हैं पात।।

--ऋता शेखर 'मधु'

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