एक सुनहरी रेखा खींच
चपल दामिनी नभ के बीच
नभ-वसुधा से रिश्ता जोड़
सघन कालिमा देती तोड़|
ले आती बारिश की धार
जिसमें हुलसे घर संसार।
समझ न पाती वह यह बात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
नदियाँ रूप धरें विकराल
हहराती सी उनकी चाल।
सुरसा सम होतीं बेताब
लहरें लिखतीं नई क़िताब।
जाने क्या क्या लेतीं लील
बुझते खुशियों के कंदील।
कृषक स्वप्न को देकर मात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
तीव्र वेग से देकर जोर
आकर नीर मचाते शोर।
तटबन्धें होतीं लाचार
खिसक गिरें उनकी दीवार।
सर सर बढ़ते जाते पाँव
पानी में डूबे हैं गाँव।
सर्प निकल करते आघात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
बह जाते हैं फसल मकान
मिट जाते कितने अरमान।
ले नेता को उड़े विमान
जनता देख हुई हैरान।
राहत के थोड़े सामान
चैनल पर करते गुणगान।
बेघर होकर मिले न भात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
@ऋता शेखर 'मधु'
ले आती बारिश की धार
जिसमें हुलसे घर संसार।
समझ न पाती वह यह बात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
नदियाँ रूप धरें विकराल
हहराती सी उनकी चाल।
सुरसा सम होतीं बेताब
लहरें लिखतीं नई क़िताब।
जाने क्या क्या लेतीं लील
बुझते खुशियों के कंदील।
कृषक स्वप्न को देकर मात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
तीव्र वेग से देकर जोर
आकर नीर मचाते शोर।
तटबन्धें होतीं लाचार
खिसक गिरें उनकी दीवार।
सर सर बढ़ते जाते पाँव
पानी में डूबे हैं गाँव।
सर्प निकल करते आघात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
बह जाते हैं फसल मकान
मिट जाते कितने अरमान।
ले नेता को उड़े विमान
जनता देख हुई हैरान।
राहत के थोड़े सामान
चैनल पर करते गुणगान।
बेघर होकर मिले न भात
बाढ़ बुलाती अति बरसात।
@ऋता शेखर 'मधु'
सु न्दर सृ जन
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 23 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअद्भुत सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
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