बुधवार, 16 सितंबर 2015

कहानी अब पुरानी है परी तितली गुलाबों की


बह्र  1222-1222-1222-1222
काफ़िया - आरा
रदीफ़ - है

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तसव्वुर में छिपे थे जो नजारों में उतारा है
जरा इतना तो कह दो जान तुझपे आज वारा है
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किसी की ख्वाहिशों में तुम सदा शामिल बने रहते
कभी यह देखना तुम बिन पिता कितना बिचारा है
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सवालों में घिरे रहकर कहाँ तक तुम भी जाओगे
तग़ाफ़ुल में रहे हरदम लगे किसको ये प्यारा है
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चले जाते जहाँ से जो चले आते हैं यादों में
न समझें हाल दिल का वो उन्हें कितना पुकारा है
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कहानी अब पुरानी है परी तितली गुलाबों की
कि दादी और नानी से हुआ अब तो किनारा है
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गिरह
हमें अदना समझना मत हमीं से है जमाना ये
हमारी उम्र कम है पर तजुर्बा ढेर सारा है

ऋता शेखर ‘मधु’

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

चल री पवन-कुंडलिया

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40.
राखी के त्यौहार में ,भाई आया द्वार
अँखियों में आई चमक, खुशियाँ मिली अपार
खुशियाँ मिली अपार, सजे अक्षत और रोली
रेशम धागा बाँध, बहन दिल से खुश हो ली
भरती हैं आशीष, हरिक धागे में पाखी
हर सावन में भ्रात, पिरोऊंगीं मैं राखी
39.
मिलकर एक- एक रहें, ग्यारह बने महान
पूर्ण करें हर काम को, लेते जब वे ठान
लेते जब वे ठान, कैद कर लेते धारा
मरु कर जाते पार, रहे थार रहे सहारा
रेशा रेशा सूत, वस्त्र बन जाते सिलकर
होता बल का भान, रहें एक एक मिलकर
38.
किलकारी रौशन रहे, ऐसा बने प्रयास
बालक हो या बालिका, सबको मिले मिठास
सबको मिले मिठास, सृष्टि को दोनों प्यारे
दें कन्या को मान, हर्ष से हक़ दें सारे
पाकर पानी खाद, महक जाती फुलवारी
सम पालन की रीत, रखे रौशन किलकारी
37.
सावन की आई झड़ी, घर में आया तीज
हुलसा मन खिलते सुमन, चहका है दहलीज़
चहका है दहलीज़, हरी कलाइयाँ खनकी
शोभित है परिधान, बिंदिया मुख पर चमकी
होती पूजा आज, पार्वती शिव पावन की
कजरी गाए बूँद, झड़ी आई सावन की
36.
गरिमा संसद की रहे, परिभाषित हो देश
रखना जनसेवक वहाँ, अनुशासित परिवेश
अनुशासित परिवेश, वतन का मान बढ़ाता
हंगामा आक्षेप, हँसी का पात्र बनाता
सुष्मित रहे स्वराज, बढ़े भारत की महिमा
सद्भावी माहौल, रखे संसद की गरिमा
35.
भरता सूरज लालिमा, प्राची में हर भोर
जग जाते इंसान खग, शोर मचाते ढोर
शोर मचाते ढोर ,कृषक खेतों में जाते
बैलों की थामे डोर, उमंगित होकर गाते
धरती का नैराश्य, अरुण उषा संग हरता
पूरब में हर भोर, लालिमा सूरज भरता
34.
चल री पवन उड़ा ध्वज़ा,बढ़ा गगन की शान
केसर- श्वेत- चक्र- हरा, जगा रहे अरमान
जगा रहे अरमान , हिन्द हो जग में न्यारा
मिटे रंक की भूख, धर्म हो सबका प्यारा
भारत माँ की गोद, शुभ्र ज्योत्स्ना तू पल री
कुसुमित हो जा आज, फहर जाने को चल री
**ऋता शेखर 'मधु'

रविवार, 13 सितंबर 2015

कर लो हिन्दी से मुहब्बत दोस्तो

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कर लो हिन्दी से मुहब्बत दोस्तो
है बड़ी उसमें नज़ाकत दोस्तो

रूह तक में वो समाती जा रही
लफ्ज़ में रखती नफ़ासत दोस्तो

देश में अपने फले फूले सदा
हर ज़ुबाँ की है क़राबत दोस्तो

बोल अपनापन भरा कहती सदा
है यहाँ माँ की इबादत दोस्तो

क्यूँ विदेशी मूल की भाषा रहे?
इसलिए करती बग़ावत दोस्तो

विश्व में इज्जत की है हक़दार वो
कर रही अपनी वकालत दोस्तो

लोरियाँ कविता रुबाई या ग़ज़ल
हर जगह है वो सलामत दोस्तो

वो सहज भाषा मिठासों से भरी
मानते हम ये हकीकत दोस्तो

कंठ तालू मूर्ध जिह्वा ओष्ठ में
वर्ण की है बादशाहत दोस्तो

हिन्द हिन्दुस्तान हिन्दी भाव है
क्यूँ वहाँ है फिर सियासत दोस्तो
|
ऋता शेखर 'मधु'

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

काली कोयल सुर मधुर-कुंडलिया छंद

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33.
काली कोयल सुर मधुर, गुण का करे बखान
सूरत से सीरत भली, देती है संज्ञान
देती है संज्ञान, सदा सद्भावी  रहना
नम्र रहे व्यवहार, वही मानव का गहना
मनहर हो जब पुष्प, पुलक जाता है माली
कानों में रस घोल, कूकती कोयल काली
32.
पलकें ही तो बांधतीं, आँसू की हर बूँद
घनी पीर के मेघ को, आँखों में लें मूँद
आँखों में लें मूँद, दर्द की सीली भाषा
बन जाए हथियार, बदल देती परिभाषा
शब्द सुमन के साथ, भाव के घट जब छलकेँ
खुशियाँ बनतीं बूँद, बाँध ना पातीं पलकें
31.
कठपुतली सी जिंदगी, नाच रही बिन शोर
सधे हाथ से साधती, यह सुख दुख की डोर
यह सुख दुख की डोर, चक्र के जैसे चलती
ज्यों बासंती आस, झरे पत्तों में पलती
स्थिर रहती है चाल, सुदृढ़ होती जब सुतली
स्वाभिमान के साथ, बने रहना कठपुतली
30.
तप की रक्षा के लिए, मुनि माँगे रघुनाथ
दशरथ ने तब काँपकर, जोड़ दिए थे हाथ
जोड़ दिए थे हाथ, चौथपन में सुत पाया
राम न माँगें आप, माँग लें गौ धन माया
''राक्षस करते भंग, यज्ञ प्रक्रिया ऋषि-जप की
राम लखन के साथ, सुरक्षा होगी तप की''

29.
नीले अम्बर के तले, बसते हैं इंसान
मज़हब माटी के लिए, बन जाते हैवान
बन जाते हैवान, खेलते खूनी होली
दिल में रखकर स्वार्थ,बोलते नकली बोली
वे संवेदनहीन, गिनें मौतों के टीले
मौन हुए मासूम, लाल में डूबे नीले
--ऋता शेखर "मधु"