कर लो हिन्दी से मुहब्बत दोस्तो
है बड़ी उसमें नज़ाकत दोस्तो
रूह तक में वो समाती जा रही
लफ्ज़ में रखती नफ़ासत दोस्तो
देश में अपने फले फूले सदा
हर ज़ुबाँ की है क़राबत दोस्तो
बोल अपनापन भरा कहती सदा
है यहाँ माँ की इबादत दोस्तो
क्यूँ विदेशी मूल की भाषा रहे?
इसलिए करती बग़ावत दोस्तो
विश्व में इज्जत की है हक़दार वो
कर रही अपनी वकालत दोस्तो
लोरियाँ कविता रुबाई या ग़ज़ल
हर जगह है वो सलामत दोस्तो
वो सहज भाषा मिठासों से भरी
मानते हम ये हकीकत दोस्तो
कंठ तालू मूर्ध जिह्वा ओष्ठ में
वर्ण की है बादशाहत दोस्तो
हिन्द हिन्दुस्तान हिन्दी भाव है
क्यूँ वहाँ है फिर सियासत दोस्तो
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ऋता शेखर 'मधु'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-09-2015) को "हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-2098) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री सर !
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 15 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दिगविजय जी !
हटाएंAha! Anupam.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सदा :)
हटाएंजय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 23/08/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
शुक्रिया कुलदीप जी !
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