यह
सर्वविदित है
कि मानव
शरीर सिर्फ
एक शरीर
नहीं बल्कि
असंख्य कोशिकाओं
का समूह
है और
सभी मिलकर
एक खूबसूरत
तन की
रचना करते
हैं। सारी
प्रक्रियाएं जो
शरीर द्वारा
किये जाते
हैं वह
हर एक
कोशिका भी
करती है।
हर तरह
से सक्षम
होते हुए
भी कोशिका
को वह
स्वरुप नहीं
मिल पाता
जो शरीर
के साथ
रहने पर
मिलता है।
परिवार
को बिलकुल
इसी तरह
से समझा
जा सकता
है। एक
पूरा मकान
कई कमरों
वाला घर
होता है।
हर कमरा
अपने आप
में परिपूर्ण
है। वहां
हर साधन
मौजूद रह
सकता है।
कमरा ही
बैठका,कमरा
ही रसोई,कमरा ही
मनोरंजन और
कमरा ही
डाइनिंग होता
है। न
कोई रोक
न कोई
टोक। आज़ादी
ही आज़ादी।
संयुक्त परिवार
टूटा तो
कम से
कम न्यूक्लिअर
परिवार तो
रहा जहाँ
माता पिता
और एक
या दो
बच्चे मस्त
हो गए।
परिवार के
नाम पर
थोडा बंधन
ज्यादा आज़ादी
मिली। समय
मिलने पर
बाक़ी लोगों
का गेट
टुगेदर भी
हो जाता
था।
अब
नए नए
गैजेट्स ने
इस नन्हे
से परिवार
को भी
बिखरा दिया
हैं। घर
के बाहर
की आभासी
दुनिया ही
रास आने
लगी है।
यह भी
पता नहीं
होता की
घर में
कौन है
या कौन
बाहर गया
है। पहले
टेलीफोन एक
स्थान पर
हुआ करता
था। घंटी
बजने पर
कोई आकर
फोन रिसीव
कर लेता
था। अब
सबके अपने
फ़ोन है
और वह
भी पासवर्ड
के घेरे
में। कोई
किसी की
मोबाइल नहीं
ले सकता।
दो अलग
अलग कमरों
में बैठे
लोगों को
मिस्ड कॉल
से बुलाया
जाता है।
नाम लेकर
जोर जोर
से बुलाने
की परम्परा
भी लुप्त
होती जा
रही है।
एक
बार तो
हद ही
हो गयी।
किसी रिश्तेदार
के घर
गयी थी।
वे बड़े
चाव से
घर के
बारे कुछ
कुछ बता
रही थी
जो शायद
उनकी बिटिया
को पसन्द
नहीं आ
रहा था।
अचानक व्हाट्सअप
की टुन्न
से आवाज़
आई ।
मोबाइल देखने
के बाद
उन्होंने अचानक
टॉपिक बदल
दिया। अब
समझ में
तो यह
बात आ
ही गई
कि बिटिया
रानी की ओर से
चुप रहने
का आदेश
था।
एक
ही कमरे
में में
बैठे सभी
सदस्य अपने
अपने लैपटॉप
पर या
अपनी मोबाइल
लेकर मस्त
हैं। पूरी
दुनिया से
संवाद चालू
है मगर
आपस में
बातचीत नहीं।
बीच बीच
में कुछ
बातें हुई
भी तो
काम चलने
भर ही
हुईं। खाने
की टेबल
पर खाना
लग चूका
होता है
ठंडा भी
हो जाता
है सबके
जुटते हुए।
आए भी
तो बायें
हाथ से
मोबाइल चिपका
ही रहता
है। खाना
खाओ और
साथ में
टिप टाप
भी करते
रहो। महिलाएं
भी अब
पीछे नहीं।
किसी खाना
खज़ाना टाइप
ग्रुप से
जुडी है
तो पहले
फ़ोटो खींची
जायेगी। फिर
रेसिपी लिखी
जायेगी तब
घर वालों
के लिए
परोसी जायेगी।
एक
करीबी रिश्तेदार
के घर
कुछ यूँ
देखा। घर
की माता
जी जो
नब्बे से
पार हो
चुकी हैं
और चलने
फिरने से
लाचार थी,
एक कमरे
में बैठी
थीं। कमरे
में सारी
सुविधाएं थीं
पर वे
इस तरह
लाचार थी
कि स्वयं
पानी लेकर
नहीं पी
पाती थीं।
घर के
सदस्य उच्च
वोल्यूम पर
टीवी चलाकर
देख रहे
थे। इधर
वो बुजुर्ग
महिला पानी
के लिए
आवाज़ दे
रही थी
मगर टीवी
के शोर
में आवाज़
दब जा
रही थी।
उनकी आँखों
में आंसू
आ गए
थे। कहने
का कोई
फायदा नहीं
था क्योंकि
इससे कोई
फायदा न
होता।
आखिर
यह आधुनिकता
या आधुनिक
उपकरण इंसान
को किस
मंजिल की
और लेकर
जा रहे
है।
अपने
ही खोल
में समाते
जा रहे
हैं लोग
कछुए की
तरह। दिन
भर फेसबुक
पर बने
रहने की
प्रवृति क्षणिक
ख़ुशी दे
रही है
पर जीवन
वही तो
नहीं, यह किशोर
बच्चे समझ
नहीं पा
रहे। जीवन आसान हो गया है गैजेट्स से | कहीं न कहीं निष्क्रियता का भी बोलबाला हो रहा है|
इन सब से बचिए| समय संयोजन बहुत आवश्यक है| मायाजाल पर रहें, खूब रहें पर समय सीमा भी निर्धारित करें| गैजेट्स को एनज्वाय करे| उसे जीवन मत बनने दें|
*ऋता*
सुन्दर सटीक सार्थक लेख |
जवाब देंहटाएंविशद वर्णन।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
सबकुछ मशीनी हो गया है
जवाब देंहटाएंभावनाओं की खिल्लियाँ इतनी रफ़्तार से उड़ाई हैं कि अपने घर में ही प्रायः हर कोई अजनबी है
behad sundar or sarthak aalekh hai aapka...
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