बह्र
1222-1222-1222-1222
मुफ़ाईलुन
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
काफ़िया- आते
रदीफ़- हैं
बिना जाने किसी को
भी कहानी क्यों बनाते हैं
इधर कहते उधर कहते
खुदा को भूल जाते हैं
किसी अनजान राहों पर
मिले रहमत खुदाई की
बहारों में वही
अक्सर शिकायत भी सुनाते हैं
न तो ईमान रखते हैं
न ही इंसान बन पाते
लगा कर आग दुनिया
में जमाने को डराते हैं
हवा में बात कर कर
के शरीफ़ों को खिजा देते
निशाने पर अगर आते
शराफ़त भी भुलाते हैं
जरा सी बात पर देखो
तुनक भी तो दिखा देते
कला उनकी निराली है
सुलह भी तो कराते हैं
*ऋता*
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