33.
काली कोयल सुर मधुर,
गुण का करे बखान
सूरत से सीरत भली,
देती है संज्ञान
देती है संज्ञान,
सदा सद्भावी रहना
नम्र रहे व्यवहार,
वही मानव का गहना
मनहर हो जब पुष्प,
पुलक जाता है माली
कानों में रस घोल,
कूकती कोयल काली
32.
पलकें ही तो बांधतीं,
आँसू की हर बूँद
घनी पीर के मेघ को,
आँखों में लें मूँद
आँखों में लें मूँद,
दर्द की सीली भाषा
बन जाए हथियार,
बदल देती परिभाषा
शब्द सुमन के साथ,
भाव के घट जब छलकेँ
खुशियाँ बनतीं बूँद,
बाँध ना पातीं पलकें
31.
कठपुतली सी जिंदगी,
नाच रही बिन शोर
सधे हाथ से साधती,
यह सुख दुख की डोर
यह सुख दुख की डोर,
चक्र के जैसे चलती
ज्यों बासंती आस,
झरे पत्तों में पलती
स्थिर रहती है चाल,
सुदृढ़ होती जब सुतली
स्वाभिमान के साथ,
बने रहना कठपुतली
30.
तप की रक्षा के लिए,
मुनि माँगे रघुनाथ
दशरथ ने तब काँपकर,
जोड़ दिए थे हाथ
जोड़ दिए थे हाथ,
चौथपन में सुत पाया
राम न माँगें आप,
माँग लें गौ धन माया
''राक्षस करते भंग,
यज्ञ प्रक्रिया ऋषि-जप की
राम लखन के साथ,
सुरक्षा होगी तप की''
29.
नीले अम्बर के तले,
बसते हैं इंसान
मज़हब माटी के लिए,
बन जाते हैवान
बन जाते हैवान,
खेलते खूनी होली
दिल में रखकर
स्वार्थ,बोलते नकली बोली
वे संवेदनहीन,
गिनें मौतों के टीले
मौन हुए मासूम,
लाल में डूबे नीले
--ऋता शेखर "मधु"
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, १२२ साल पहले शिकागो मे हुई थी भारत की जयजयकार , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...