रिश्तों को मजबूत बनाते हैं हमारे रीति रिवाज
रिश्तों का बंधन अटूट होता है किन्तु इनमें भी ताजगी बनाए रखने में कुछ
परम्पराओं की अहम भूमिका होती है| भारत उत्सव प्रधान देश है| साथ ही रीति रिवाजों का भी देश है जो ढीले होते रिश्तों को पकड़ प्रदान करता है| ये रिवाज रिश्तों को
अहमियत देते हैं दिखावों को नहीं| घर में नए सदस्य का आगमन अपार खुशियाँ लाता है|
बच्चे के जन्म की खुशी धूमधाम से मनाई जाती है| उत्तर भारतीय परिवारों में बच्चे
के जन्म के छह दिनों बाद छठी(जन्मोत्सव) का रस्म मनाया जाता है| जन्म से लेकर
छट्ठी तक बच्चा पुराने कपड़ों में रहता है| छठी के दिन शाम को उसे नए पीले
वस्त्र- पाजामा, कुर्ता, टोपी पहनाई जाती
है| हाथ-पैरों में लाल या काले धागे पहनाए जाते हैं| जहाँ पर छट्ठी पूजन का
कार्यक्रम होना है वहाँ पर बच्चे की माँ से कुछ रस्में करवाई जाती हैं| वहीं पर एक
पीढ़ा( काठ की बनी छौटे पैरों वाली चौकी) रखी जाती है| पीले कपड़े में लपेटकर
बच्चे को उसपर रखा जाता है| बच्चे के ऊपर सफेद कागज रखकर उसपर लाल कलम से कुछ
भगवानों के नाम लिखे जाते हैं, ऐसा माना जाता है कि वे भगवान बच्चे के लिए अच्छी
किस्मत लिखेंगे| उसके बाद घी का दीपक जलाकर चाँदी, काँसे या पीतल की थाली पर उसकी
कालिख मतलब काजल बनाई जाती है| वही काजल बच्चे की आँखों में लगाया जाता है| ये
सारे कार्यक्रम बच्चे की बुआ के हाथों सम्पन्न होते हैं|
उसके बाद जो भी दस- पन्द्रह तरह के
पकवान बनते हैं वह बच्चे की माँ को खाने के लिए दिए जाते हैं और यह खाना वह ननद के
साथ खाती है|
अभी हाल में ही पड़ोस में छठी में गई थी| सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं|
किन्तु रस्म शुरु नहीं किए जा रहे थे क्योंकि बच्चे की बुआ अर्थात घर की बेटी
अर्थात बच्चे के पापा की बहन नहीं आई थी| उसका बेसब्री से इन्तजार किया जा रहा था|
उस लड़की की समस्या यह थी कि ससुराल से मायके आने की इजाजत उसे कम ही मिलती थी|
दोनों परिवार समझदार थे इसलिए इस बात को लेकर उनमें कोई रंजिश नहीं थी| चूँकि वह
बच्चे की इकलौती बुआ थी इसलिए उसे आना ही आना था| अचानक सुगबुगाहट हुई कि बुआ आ
गई| पूरा घर खुशियों से चहक उठा| माता पिता भाई सबके चेहरे पर रौनक आ गई| जो घर
अभी तक खामोश नजर आ रहा था वहाँ बिटिया के आते ही बहार आ गई| बेटी भी दौड़कर अपने
नन्हे भतीजे के पास गई| उसने खुशी खुशी सारा रस्म किया| बिटिया को काजल पराई के
लिए नेग मिला| इस तरह बड़े ही हँसी-खुशी के माहौल में यह उत्सव सम्पन्न हुआ| उस
वक्त मैं यही सोच रही थी कि हमारे रिवाजों ने बेटी के इस रिश्ते को इतने जबरदस्त
रस्मों से न बाँधा होता तो उस समय वह कभी नहीं आती| ऐसे अनेक रिवाज हैं जो बेटी,
बहन, भाई, भाभियों के ही होते हैं और उस वक्त उनका उपस्थित रहना अनिवार्य होता है|
तो क्या ख्याल है आपका...रस्म-रिवाज रिश्तों को बाँधकर रखते हैं या नहीं|
ऋता शेखर 'मधु'
सच है.हमारे रस्म-रिवाज रिश्तों को बाँधकर ही रखते हैं ..बहुत बढ़िया पोस्ट..ऋता.नवरात्रि की शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा ऋता जी.....हर रिवाज़ के पीछे कोई प्यारी सी सोच है...रिश्तों को बाँधने की या उन्हें और सुदृढ़ करने की...जैसे मालवा में भई के साथ भावज और भतीजे को भी राखी बांधते हैं....क्यूंकि भई बहन के रिश्ते में भावज की सहमती और स्नेह कितना ज़रूरी है ...
जवाब देंहटाएंप्यारी सी पोस्ट
सस्नेह
अनु
बेशक...रस्म-रिवाज रिश्तों के डोर को एक चादर में पिरोकर रखते हैं |
जवाब देंहटाएंइसिलए तो कहते हैं कि "रिश्ते,जिंदगी के लिए होते हैं,जिंदगी रिश्तों के लिए नही"
रिवाजों में अपनत्व की मिठास और खुशबू होती है
जवाब देंहटाएंरीति रिवाज रिश्तों को समृद्ध कराते हैं ... सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ...हमें जोड़कर रखते हैं ये रीत रिवाज़......
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ...हमें जोड़कर रखते हैं ये रीत रिवाज़......
जवाब देंहटाएंरिवाजों की डोर से रिश्ते मजबूती से बंधे होते हैं ...सही है !
जवाब देंहटाएंरीति-रिवाज ही है जो हम सब को अलग होते हुए भी एक ही डोर में कहीं न कहीं बाधें हुए है
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (20-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ! नमस्ते जी!
शुक्रिया सर!!...आभार!
हटाएंबहुत सच कहा है..रीति रिवाज़ रिश्तों में प्रगाढता पैदा करते हैं, लेकिन आज कल हम सब इन रीति रिवाजों को भूलते जा रहे हैं..
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय एवं गूढ़ प्रस्तुति। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमैं बिल्कुल इस बात से सहमत हूं।
जवाब देंहटाएंरीति रिवाज ही आपको अपनी जड़ों से जोड़े रखने का काम भी करते हैं।
सार्थक लेख,
किसी तकनीकी वजह से ब्लॉग :
जवाब देंहटाएंकहलाने एकत बसें ,अहि ,मयूर ,मृग ,बाघ जगत तपोवन सा हुआ ,दीरघ दाघ ,निदाघ
…कबीरा खडा़ बाज़ार में खुल नहीं रहा है कृपया इसी पोस्ट को यहाँ पढ़ें ,वायदा है आपको निराशा नहीं होगी
ram ram bhai
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शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012
कहलाने एकत बसत ,अहि ,मयूर ,मृग ,बाघ जगत तपोवन सो कियो ,दीरघ दाघ ,निदाघ
http://veerubhai1947.blogspot.com/
अग्रिम शुक्रिया पधारने का .
वीरुभाई ,कैंटन ,मिशिगन ,यू .एस .ए .
कोई रोको रे स्पैम बोक्स बुलाये रे ,
टिपण्णी दबाके खाए रे .....
रिश्तों को मजबूत बनाते हैं हमारे रीति रिवाज
रिश्तों का बंधन अटूट होता है किन्तु इनमें भी ताजगी बनाए रखने में कुछ परम्पराओं की अहम भूमिका होती है| भारत उत्सव प्रधान देश है| साथ ही रीति रिवाजो।।।।।।।।।। (रिवाजों )..............का भी देश है जो ढीले होते रिश्तों को पकड़ प्रदान करता है|
उत्तर भारतीय परिवारों में बच्चे के जन्म के छह दिनों बाद छट्ठी(जन्मोत्सव);;;;;;;...........छटी ......... का रस्म मनाया जाता है|........हाँ!ऐसा मजा चखाऊँगा , छटी का दूध याद आजायेगा ......इस अंचल का मुहावरा भी है .
हाथ-पैरों में लाल या काले धागे पहनाए जाते है|........हैं ...........
अचानक सुगबुगाहट हुई कि बूआ आ गई|...........असल संबोधन "बुआ "है बेशक जोर की आवाज़ लगाने पर बू -आ .....हो जाएगा जैसे मंजु का मंजू हो जाता है .
रस्मों रिवाज़ रिश्तों से ही जुड़े हैं यही तो उत्सव प्रियता है भारतीय मानस की .
शुक्रिया सर...दोनों शब्दों को ठीक कर दिया है|
हटाएंबुआ से एक विशेष लगाव होता है बच्चों को और बुआ भी भतीजे-भतीजी पर जान छिड़कती हैं..सुंदर पोस्ट !
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पोस्ट।
मेरी नई पोस्ट पर आमंत्रित करता हूँ
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html