मंगलवार, 8 जनवरी 2013

दो आँखें



दो आँखें

गहरी धुँध
सर्द हवाएँ
ठिठुरा बदन
सन्नाटे रास्ते...
धुँध के पीछे
चमक रहा था कुछ
कोई छुपा था
कौन है वो
आगे बढ़ी
धुँध के साथ
वह भी पीछे खिसका
कैसे देखूँ
धूप गहरायी
धुँध हल्की हुई
रुह पर चिपकी
दो आँखें चमक रही थीं
अनगिनत सवाल लिए
शायद कह रही थी
मैं तो अकेली थी
बहुत दर्द सहा, मगर
बच नहीं पाई
तुम लाखों में हो
मेरी बेचैन रुह को
अब भी बचा लो
इंसाफ़ दिला दो
इंसाफ़ दिला दो
हाथ बढ़ाया कि
सहला दूँ उसके बालों को
पर यह क्या?
वह ग़ायब हो गई
उसे सांत्वना नहीं
सिर्फ़ और सिर्फ़
इंसाफ़ चाहिए था
दिन पूरी तरह चमकने लगा था
पर धुँध अब मन के अन्दर छाया था|
ऋता शेखर मधु

22 टिप्‍पणियां:

  1. आँखों में बेचैनियाँ, काँप दर्द से जाय |
    सांत्वना से आपकी, नहीं रूह विलखाय |
    नहीं रूह विलखाय, खाय ली देह हमारी |
    लाखों लेख लिखाय, बचे पर अत्याचारी |
    है भारत धिक्कार, रेप हों हर दिन लाखों |
    मरें बेटियाँ रोज, देखते अपनी आँखों ||

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  2. बहुत सुन्दर...
    मन के भीतर छाई धुंध न जाने कब छंटेगी ...

    गहन रचना..
    सस्नेह
    अनु

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  3. जाने कब इंसाफ मिलेगा और ये मन की धुंध हटेगी..
    भावपूर्ण रचना...

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  4. अति सुंदर कृति
    ---
    नवीनतम प्रविष्टी: गुलाबी कोंपलें

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  5. इन्साफ की पूरी उम्मीद भी है और बदलाव की आशा भी.. अब चुनौती हमारे युवा पीढ़ी पर है. सुन्दर रचना.

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  6. बस अब तो इंसाफ ही चाहिए .... संवेदनशील रचना

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  7. अब बस इन्साफ ही चाहिए ... वो भी जल्दी चाहिए .. किसी को संघर्ष न करना पड़े ... तभी सार्थक है ...

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  8. उसे सांत्वना नहीं
    सिर्फ़ और सिर्फ़
    इंसाफ़ चाहिए था
    बिल्‍कुल सच

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  9. उसे सांत्वना नहीं सिर्फ़ इंसाफ़ चाहिए,,,,सुंदर अभिव्यक्ति,,

    recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

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  10. उसे सांत्वना नहीं सिर्फ़ इंसाफ़ चाहिए,,,, जो उसे कभी भी नहीं मिलने वाला :((
    आपकी रचना ,अद्धभुत अभिव्यक्ति है !!

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  11. त्वरित न्याय ही समाधान है।
    सार्थक सामयिक कविता।

    --
    थर्टीन रेज़ोल्युशंस

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  12. मन की धुंध हटेगी..उम्मीद का दीया जलेगा ही..

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