मंगलवार, 16 अगस्त 2016

धनवान-लघुकथा

धनवान 
मुसलाधार बारिश में माया छतरी लेकर जल्दी जल्दी घर जा रही थी|
''अरे माया, गाड़ी में आ जा" अचानक माया के बगल में एक बड़ी सी कार रुकी और ऐश्वर्या ने दरवाजा खोला|
''मैं चली जाऊँगी''
''अब आ भी जा न|''
माया फिर ना नहीं कह सकी| छतरी बन्द करके अन्दर आ गई|
अन्दर बैठकर अपनी अमीर सहेली की साड़ी की कीमत आँकती हुई अपने कपड़े से उसकी तुलना करने लगी|
''माया, मेरे घर चल| आज बड़े दिनों बाद मिले हैं| गप्पें शप्पें लड़ाएँगे|''
गाड़ी एक आलीशान बँगले के सामने रुकी| गार्ड ने दरवाजा खोला| दोनो उतरीं और अन्दर गई| माया उसकी शान शौकत देखकर हीनता से ग्रसित हो रही थी| ऐश्वर्या के दोस्ताना व्यवहार में कमी नहीं थी| दोनो खूब बातें करती हुई ठहाके लगाने लगीं|
तभी गार्ड ने सूचना दी,''मेम साब, साहब आ गए|''
माया जाने के लिए उठ खड़ी हुई| तब तक ऐश्वर्या के पति अन्दर आ गए| चाल की लड़खड़ाहट और मुँह से आती तेज दुर्गंध से माया थोड़ा घबरा गई| उसने जल्दी से हाथ जोड़कर नमस्ते किया और बाहर आ गई| अन्दर से ऐश्वर्या के तेज तेज बोलने की आवाज आ रही थी| शायद वह इस स्थिति का विरोध कर रही थी| फिर तेज थप्पड़ की आवाज सुनाई दी जिसकी गूँज माया को घर पहुँचने तक सुनाई देती रही|
घर पहुँच कर माया ने देखा, उसके पति गर्मागरम चाय के साथ उसका इन्तेजार कर रहे थे| माया ने धीमे से कहा,'' मैं बहुत धनवान हूँ|"
-ऋता शेखर 'मधु'

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