गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

कुछ अच्छा भी-लघुकथा

कुछ अच्छा भी
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नीरज को दोस्ती करना अच्छा लगता था। सिर्फ दोस्ती ही नहीं करता , यदा कदा घर में दोस्तों को बुलाकर पार्टियाँ भी दिया करता।उसकी पत्नी जूही सहर्ष पार्टियों का इंतेज़ाम करती। नीरज का दस वर्षीय बेटा रोहन भी अपने पिता के मित्रों के बच्चों का दोस्त बन गया था।
दोस्तों से घिरा रहने वाले नीरज को कोरोना के कारण घर में कैद रहना जल्द ही अखरने लगा। जब अनलॉक शुरू हुआ तो उसने अपने मित्रों को फिर से बुलाया। सबने कोई न कोई बहाना बनाकर आने से इनकार कर दिया। घर में इसी पर चर्चा छिड़ी हुई थी।
"जूही, मेरा कोई मित्र घर नहीं आना चाहता।"
" तो हम उनके घर चलेंगे पापा। आप उनको बता दो कि आज शाम हम आएँगे।" रोहन बीच में बोल पड़ा।
"ठीक है," कहकर नीरज ने अपने एक मित्र को फोन लगाया।
उस मित्र ने कहा कि वह शाम को व्यस्त है। उसके बाद दो अन्य मित्रों ने भी व्यस्तता का बहाना बना दिया।
"बहुत ही खराब समय चल रहा। किसी को दोष देना फ़िज़ूल है," जूही ने संजीदगी से कहा।
"पापा, आप रजनी बुआ को फोन करो। वे मना नहीं करेंगी।"
नीरज को याद आया कि जाने कितने महीनों, नहीं करीब दो वर्षों से उनकी आपस में बात नहीं हुई थी। रजनी पहले हमेशा फोन करती थी किन्तु नीरज के अन्य कॉल पर व्यस्त होने की सूचना मिलते ही रख देती। इस कॉल की सूचना नीरज को भी मिल जाती थी पर उसने कभी कॉल बैक करना जरूरी नहीं समझा। धीरे धीरे रजनी ने फोन करना बंद कर दिया। कभी कभी जूही फोन से हालचाल ले लिया करती थी|
आज अचानक फोन करने में नीरज को थोड़ी झिझक हुई फिर भी उसने कॉल लगाया। रजनी ने तुरंत फोन उठाया और खुश होकर बातें करने लगी।
" रजनी, रोहन तुम्हें मिस कर रहा। क्या तुम यहाँ आ सकती हो या हमलोग ही तुम्हारे यहाँ आ जायें?"
"अरे वाह! आ जाओ भइया। बड़ा मजा आएगा।इसी बहाने तुमलोगों की सैर भी हो जाएगी।"
नीरज ने फोन रख दिया।
"इस संक्रमण ने दोस्त को दोस्तों से दूर कर दिया , पर रिश्ते नजदीक आ गए," जूही ने मुस्कुराकर कहा और रोहन को लेकर तैयार होने चल दी।
@ऋता शेखर' मधु'

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