शनिवार, 7 नवंबर 2020

चार लघुकथाएँ


१.
कब तक
"अरे आभा, इतनी बुझी बुझी क्यों है? अभी सिर्फ महीना भर शादी को हुए हैं। लाइफ एन्जॉय करना चाहिए, पर तेरे चेहरे पर तो।"
"माला, लड़कियां लाइफ एन्जॉय कब और कैसे करें...शादी के पहले माँ ने सास का नाम ले लेकर डराया। ये करो, वो नहीं करो, नहीं तो सास के उलाहने पड़ेंगे।अब बात बेबात सास, माँ का नाम लेती रहती हैं।इन दो माओं के बीच लड़की का अस्तित्व कहाँ है।"
"आभा, तुम्हारी बात तो शत प्रतिशत सही है। आओ, हमलोग प्रण करें कि अपनी बेटियों को सही शिक्षा अच्छे नागरिक बनने के लिए देंगे, न कि किसी के नाम से भय दिखाकर..."
ऋता शेखर 'मधु'
२.
सागर की आत्महत्या
नलिनी ने सुबह की चाय के साथ अखबार भी ले लिया था।अखबार में एक कहानी छपी थी। कहानी का शीर्षक आकर्षक था " एक सागर की आत्महत्या"।
" एक सागर था। अपने आप में मस्त, मीठे जल, शांत लहरों वाला। सागर की विशालता देखते हुए उसमें जाने कितने जीव जंतुओं ने आश्रय लेना शुरू कर दिया। उदारमना सागर सभी का आश्रयदाता बन गया। उतने जीव जंतुओं ने सागर के जलको उद्वेलित करना शुरू कर दिया। एक दिन सागर ने देखा कि एक नन्ही सी सीप उसकी तली में बैठी है। उसने वहाँ पर अपनी लहरों को शांत करके सुरक्षा दी । उसमें एक चमकीले मोती का सृजन हो रहा था। एक दिन सागर शांत भाव से किनारे की चहलकदमी कर रहा था कि सामने से एक नदी आती दिखी। शायद बहुत दूर से आ रही रही। थकी थकी सी। सागर ने अपनी बाहें फैला दीं और नदी उसमें समाहित हो गयी। धीरे धीरे सागर ने महसूस किया कि सृष्टि के इतने सारे जीवों और नदियों को समेट लेने से उसकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गयी थीं। उसका जल खारा हो गया था। उसकी लहरों का वेग बढ़ गया था। अब वह शांत नहीं था बल्कि बहुत कुछ कहने को किनारे पर भागता । फिर बिना कहे लौट जाता क्योंकि सब उसके खारेपन को लेकर मजाक बनाते थे। कोई नहीं समझ पाता था कि जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए मीठा रहना मुश्किल था।सबके लिए उसने अपनी आत्मा को मार लिया था। सागर की इस आत्महत्या को समझने वाला ही कौन था।"
नीचे लेखक का नाम पढ़ते ही नलिनी की आँखें फैल गईं। साहिल कब से लिखने लगा। नलिनी के दिल में कसक सी उठी। "ओह! मैंने और बच्चों ने साहिल को खडूस कहकर बहुत मजाक बनाया है। अशक्त माता पिता और दो छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारियाँ निभाने में कभी कभी मैं भी स्वार्थी बनकर कठोर हो जाती हूँ। तो क्या साहिल मुझसे मन की बात कहना चाहता है किंतु मैने कभी सुननी ही नहीं चाही। कितना दर्द छुपा है उसके मन में।"
दो दिन पहले आफिस के काम से शहर से बाहर गए पति को फोन लगाने के लिए उसने मोबाइल उठा लिया।

*जंगल की नदी*
'दादी, मुझे उस बड़े जंगल में जाना है," छोटा मेमना अपनी दादी की गोद में ठुनक रहा था|
" नहीं, वहाँ नहीं जाना| वहाँ बड़ी सी नदी है जिसमें मेमने बह जाते हैं| वह भी तो बह गया था"
"कौन बह गया था दादी, बताओ न"
"तुम्हारा चाचा,वह भी जब नन्हा सा मेमना था पूरे जंगल में अपनी धाक जमाना चाहता था| इसके लिए वह अपना छोटा जंगल छोड़कर बड़े जंगल में चला गया| वहाँ उसे उसके काम की बहुत वाहवाही मिली| तभी उसकी दोस्ती एक लोमड़ी से हो गई| लोमड़ी ने धीरे धीरे मेमने को अपने अधिकार में लेने लगी| मेमना इसे समझ नहीं पाया| अचानक एक दिन उसने देखा कि उसके चारो ओर शेर , चीते, भेड़िए खड़े हैं | वह घबड़ा गया और भागने की तरकीब सोचने लगा| तभी उसने देखा कि लोमड़ी दूर खड़ी मुस्कुरा रही थी| वह सारी बात समझ गया किंतु तब तक भागने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे|
एक दिन छोटे जंगल में सभी स्तब्ध हो गये थे जब उन्हें खबर मिली कि मेमना नदी में डूब गया," कहते हुए दादी ने लम्बी साँस ली|
"मैं तैरना सीखकर जाऊँगा न, फिर नहीं बहूँगा" मेमना अपनी जिद पर अड़ा था|
"वह भी कुशल तैराक था,"कहकर दादी ने आँखें पोंछ लीं|

४. कुछ अच्छा भी
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नीरज को दोस्ती करना अच्छा लगता था। सिर्फ दोस्ती ही नहीं करता , यदा कदा घर में दोस्तों को बुलाकर पार्टियाँ भी दिया करता।उसकी पत्नी जूही सहर्ष पार्टियों का इंतेज़ाम करती। नीरज का दस वर्षीय बेटा रोहन भी अपने पिता के मित्रों के बच्चों का दोस्त बन गया था।
दोस्तों से घिरा रहने वाले नीरज को कोरोना के कारण घर में कैद रहना जल्द ही अखरने लगा। जब अनलॉक शुरू हुआ तो उसने अपने मित्रों को फिर से बुलाया। सबने कोई न कोई बहाना बनाकर आने से इनकार कर दिया। घर में इसी पर चर्चा छिड़ी हुई थी।
"जूही, मेरा कोई मित्र घर नहीं आना चाहता।"
" तो हम उनके घर चलेंगे पापा। आप उनको बता दो कि आज शाम हम आएँगे।" रोहन बीच में बोल पड़ा।
"ठीक है," कहकर नीरज ने अपने एक मित्र को फोन लगाया।
उस मित्र ने कहा कि वह शाम को व्यस्त है। उसके बाद दो अन्य मित्रों ने भी व्यस्तता का बहाना बना दिया।
"बहुत ही खराब समय चल रहा। किसी को दोष देना फ़िज़ूल है," जूही ने संजीदगी से कहा।
"पापा, आप रजनी बुआ को फोन करो। वे मना नहीं करेंगी।"
नीरज को याद आया कि जाने कितने महीनों, नहीं करीब दो वर्षों से उनकी आपस में बात नहीं हुई थी। रजनी पहले हमेशा फोन करती थी किन्तु नीरज के अन्य कॉल पर व्यस्त होने की सूचना मिलते ही रख देती। इस कॉल की सूचना नीरज को भी मिल जाती थी पर उसने कभी कॉल बैक करना जरूरी नहीं समझा। धीरे धीरे रजनी ने फोन करना बंद कर दिया। कभी कभी जूही फोन से हालचाल ले लिया करती थी|
आज अचानक फोन करने में नीरज को थोड़ी झिझक हुई फिर भी उसने कॉल लगाया। रजनी ने तुरंत फोन उठाया और खुश होकर बातें करने लगी।
" रजनी, रोहन तुम्हें मिस कर रहा। क्या तुम यहाँ आ सकती हो या हमलोग ही तुम्हारे यहाँ आ जायें?"
"अरे वाह! आ जाओ भइया। बड़ा मजा आएगा।इसी बहाने तुमलोगों की सैर भी हो जाएगी।"
नीरज ने फोन रख दिया।
"इस संक्रमण ने दोस्त को दोस्तों से दूर कर दिया , पर रिश्ते नजदीक आ गए," जूही ने मुस्कुराकर कहा और रोहन को लेकर तैयार होने चल दी।
@ऋता शेखर' मधु'

6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 13-11-2020) को "दीप से दीप मिलें" (चर्चा अंक- 3884 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    "मीना भारद्वाज"

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  2. सार्थक एवं विचारणीय लघुकथाएं 🙏

    दीपोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🚩🙏
    - डॉ शरद सिंह

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  3. सभी लघुकथाएँ बहुत अच्छी है।

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