रविवार, 13 जनवरी 2013

उस दीपक सी हो पावन तुम




इन मेघों की हो सावन तुम
इस बगिया की मनभावन तुम
जले रात्रि-मध्य देवालय में
उस दीपक सी हो पावन तुम

चंचल हवा सुहावन तुम
मीरा की वृंदावन तुम
इस रस्ते जो पतित हुए
हो करती उनको पावन तुम

प्राची किरण लुभावन तुम
प्रात: की सजावन तुम
मन जो मेरा डूब गया
उस सोच की हो प्लावन तुम...

...
..
1Unlike ·  · 

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

दो आँखें



दो आँखें

गहरी धुँध
सर्द हवाएँ
ठिठुरा बदन
सन्नाटे रास्ते...
धुँध के पीछे
चमक रहा था कुछ
कोई छुपा था
कौन है वो
आगे बढ़ी
धुँध के साथ
वह भी पीछे खिसका
कैसे देखूँ
धूप गहरायी
धुँध हल्की हुई
रुह पर चिपकी
दो आँखें चमक रही थीं
अनगिनत सवाल लिए
शायद कह रही थी
मैं तो अकेली थी
बहुत दर्द सहा, मगर
बच नहीं पाई
तुम लाखों में हो
मेरी बेचैन रुह को
अब भी बचा लो
इंसाफ़ दिला दो
इंसाफ़ दिला दो
हाथ बढ़ाया कि
सहला दूँ उसके बालों को
पर यह क्या?
वह ग़ायब हो गई
उसे सांत्वना नहीं
सिर्फ़ और सिर्फ़
इंसाफ़ चाहिए था
दिन पूरी तरह चमकने लगा था
पर धुँध अब मन के अन्दर छाया था|
ऋता शेखर मधु

रविवार, 6 जनवरी 2013

सरवाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट



सरवाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट

एक बार कालदेव यमराज जी महाराज अपने असिस्टेंट चित्रगुप्त जी महाराज के साथ पृथ्वी भ्रमण को आए| सबसे पहले तो वह यहाँ की भीड़भाड़ देखकर घबड़ा गए| उन्होंने सोचा कि यहाँ इतनी भीड़ है तो सबकुछ कैसे मैनेज होता होगा| यही बात उन्होंने चित्रगुप्त जी से पूछा| चित्रगुप्त जी ने कहा कि दो-चार स्थानों पर जाकर देखते हैं कि सब कुछ किस सिस्टम से चलता है| सुबह का समय था तो सोचे कि पहले मंदिर जाकर भगवान के दर्शन कर लूँ| दर्शन करने के लिए लड्डु लेने थे| देखा कि बहुत सारे लोग प्रसाद खरीदने ले लिए लाइन में लगे थे| यमराज जी तो यह सिस्टम जानते नहीं थे तो लाइन में सबसे आगे आकर लड्डु लेना चाह रहे थे तभी आवाज आई क्यू में रहिए |  बेचारे सकपका गए| उन्होंने चित्रगुप्त जी की ओर देखा| चित्रगुप्त जी ने बताया कि वे लाइन में आगे नहीं आ सकते| करीब पन्द्रह-बीस मिनट बाद वे प्रसाद खरीद पाए| प्रसाद लेकर मंदिर की ओर बढ़े| वहाँ लम्बी लाइन लगी थी| एक बार डाँट सुन चुके थे सो चुपचाप लाइन में लग गए| आधे घंटे बाद भगवान के निकट पहुँच पाए| वहाँ से निकले तो सोचे जलपान कर लूँ| किसी जाने माने होटल में पहुँचे| उस वक्त सभी मेजें भरी थी सो उन्हें क्यू में खड़ा कर दिया गया| कुछ जबरदस्त लोग क्यू में आगे आने की चेष्टा कर रहे थे| अपनी बारी आने पर ही भोजन नसीब हुआ| कुछ देर वहाँ घूमने के बाद दूसरे शहर जाने की इच्छा हुई| ट्रेन से जाना था तो टिकट कटवाने के लिए वहाँ भी क्यू में लग गए| यहाँ भी जबरदस्त लोग आगे आना चाह रहे थे| किसी तरह टिकट मिली| लोकल ट्रेन थी तो धक्कामुक्की कर के ट्रेन में घुसे| अन्दर बैठने की भी जगह नहीं थी, बेचारे खड़े खड़े ही सफर तय किए| इस तरह घूमते घूमते शाम हो गई| बहुत थकने के बाद अचानक यमराज जी की तबियत खराब हो गई| चित्रगुप्त जी घबड़ा गए| वहाँ आसपास खड़े लोगों से मिन्नतें की कि वे उन्हें हॉस्पीटल तक जाने में मदद करें पर लोगों ने ध्यान नहीं दिया| बेचारे किसी तरह हॉस्पीटल पहुँचे| यहाँ भी लाइन...यमराज जी की तबियत बहुत खराब थी फिर भी क्यू के अनुसार ही चलना था| मन मारकर चित्रगुप्त जी क्यू में खड़े हो गए| तबियत सँभली तो वापस अपने लोक लौट गए|
यहाँ आकर दोनों ने विचार किया कि हमें भी क्यू सिस्टम लागू करना चाहिए| चित्रगुप्त जी महाराज ने लम्बी सी लिस्ट बनाई और सबको क्यू में लगा दिया| पर यह क्या...तत्क्षण ही काउंटर खाली हो गया| जो जबरदस्त लोग पृथ्वी पर आगे आने की चेष्टा करते थे वे यहाँ क्यू में पीछे चले जा रहे थे| बेचारे सिद्धान्तवादी लोग लाइन में लगे थे|
एक दिन चित्रगुप्त जी ने ऑफिस खोला तो एक करीब तेइस साल की लड़की सबसे आगे खड़ी थी| चित्रगुप्त जी ने कहा- बेटी, अभी तुम्हें इस लोक में आने का समय नहीं हुआ है|
लड़की ने हाथ जोड़कर कहा- महाराज, पृथ्वी पर सरवाइवल ऑफ द फ़िटेस्ट का सिद्धान्त चलता है...और मैं वहाँ रहने के लिए फिट नहीं हूँ सो आप मुझे यहाँ बुला लो...सभी लड़कियों को बुला लो|
अरे, ऐसे कैसे...इस तरह तो सृष्टि ही थम जाएगी| दुर्गा जैसी नारी बनो|
किन्तु दुर्गा भी तो साधारण स्त्री ही थीं, शक्ति तो उन्हें भगवान शिव से मिली थी तभी वे आततायियों का विनाश कर पाईं| पृथ्वी पर हमें शक्ति देने वाला कोई नहीं है|
बताओ, तुम्हें किससे शक्ति चाहिए|
न्याय व्यवस्था से, समय पर न्याय न मिल पाने से स्त्रियाँ कमजोर पड़ जाती हैं, ...इसलिए मुझे यहाँ बुला लो|
चित्रगुप्त भगवान सोच में लीन हो गए...लड़की की बातों में दम था, किन्तु वे इस समस्या को सुलझाने में लाचार थे|

ऋता शेखर मधु

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

रंगीन सफ़ेद


रंगीन सफ़ेद

इन्द्र के नीरद बरस चुके
पारदर्शक बूँदें हैं कुछ शेष|                        
दिवाकर की किरण निस्तेज
विकर्ण हों बिखेरें रंग विशेष|
दूर क्षितिज पर चमक रहा
सतरंगी इन्द्रधनुष का तेज|      
सात रंगों की सात कहानी
कहता मनभावन अर्धवृत|
मानस पटल पर उकेर रहा
हर रंग के कुछ कुछ चित्र|

बैंगनी का है गाढ़ा रंग
कहता जीवन नहीं बेरंग|
गाढ़े नीले की गहराई
राम, श्याम के मन को भाई|
हल्के नीले की चतुराई
नभ, सागर में जा समाई|
हरा समृद्धि का द्योतक
सावन, वनस्पति पर छाई|
पीला रंग बसंत का
क्यारी क्यारी में लहराई|
नांरंगी चमकी नवयुवकों में
देशभक्ति का भाव जगाने आई|
लाल की लाली निराली
क्रोध और कुर्बानी सिखलाई|

सात रंगों का समावेश
श्वेत रंग की शांति लाई|
सप्त वर्ण बनकर सफ़ेद
अमन का संदेश सुनाने आई|
सात रंग के सात किरण
सूर्य-किरण से निकल कर आईं|
सात किरण सात अश्व हैं
भास्कर रथ चलाने आई|

सफ़ेद रंग सबसे रंगीन
न्यूटन की चकरी समझाने आई|
न्यूटन की चकरी में होते
इन्द्रधनुष के सात रंग
वेग से जब नाचते
दिखते सिर्फ़ और सिर्फ़ रंग सफ़ेद|

              ऋता शेखर मधु

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

२०१२ की पॉपुलर पोस्ट (दोहा छंद)

वर्ष 2012 का आज अन्तिम दिन...मौजूदा वारदात पर मन द्रवित है...फिर भी समय अपनी गति नहीं छोड़ता ...2013 को नियम के अनुसार आना है...आने वाले वर्ष में हालात सुधरें,  इसी आशा के साथ नए वर्ष की शुरुआत करनी है...सभी को नव वर्ष की मंगलकामनाएँ !!


 ब्लॉगर के अनुसार २०१२ की जो सबसे पॉपुलर पोस्ट रही वह फिर से प्रकाशित कर रही हूँ|


बूँद-बूँद तरसे धरा, ताक रही आकाश|
मेघ, अब आओ जरा, मिलने की है आस|१|

मतवाले बादल चले, घोड़े-सी है चाल|
हौले मस्त हवा चली, झूमें तरु के डाल|२|

घटा घनघोर छा रही, नाच रहा है मोर|
चपल दामिनी हँस पड़ी, बादल करता शोर|३|

घन-घन करके गरज रहा, इन्द्रदेव का दूत|
माँ के आँचल जा छुपा, उसका डरा सपूत|४|

प्रचण्ड-वेग समीर बहे, झुकते ताड़-खजूर|
धूल-भरी हैं आँधियाँ, उड़ें फूस-छत दूर|५|

बादलों से गगन ढका, है बारिश की थाप|
भोर निशा-सी लग रही, सूरज सोया चुपचाप|६|

खुशबू सोंधी उड़ रही, टप टप बरसा नीर

तन मन पुलकित हो गए, चलो ताल के तीर|७|


बारिश की धारा बही, छप-छप करते पाँव|
कतारों में हैं सजते, कागज के सब नाव|८|

मुसलाधार बारिश में, सजा राग मल्हार|
पकौड़ियाँ छनने लगीं, छाई हँसी-बहार|९|

नदी- ताल- पोखर भरे, बारिशों का कमाल|
टर-टर से गूँजा शहर, मेढकों का धमाल|१०|

बूदें नभ में जा टँगीं, हो रहा परावर्तन|
इन्द्रधनुष के सात रंग, करने लगे नर्तन|११|

मेंहदी हाथों में रची, मुखड़ा होता लाल|
मंद- मधुर मुस्कान से, सखियाँ करें सवाल|१२|

ऋता शेखर मधु

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

कलम का प्रोटेस्ट




नींद में ही
इक आवाज सुनी
वह चली गई
मन स्तब्ध
आँखें नम
हृदय की धड़कन
रुकी-रुकी सी
मन की शक्ति
चुकी-चुकी सी
कलम उठाया
कि लिख दूँ
उसकी आत्मा की शांति के लिए
दो शब्द
पर यह क्या?
कलम ने
चलने से इंकार किया
क्यूँ.....?
कलम ने कहा-
नहीं लिख सकोगी
मेरी भी जिद थी-
लिख लूँगी
-तो फिर लिखो
मैंने उढ़ेल दी
सारी संवेदनाएँ
पर उभरा
एक ही निशान
प्रश्नचिन्ह का
?????
?????
मैं अवाक्
कलम ने कहा-
पहले आँख मूँदो
महसूस करो उसे
उसके घरवालों को
दो मिनट का मौन रखो
फिर लिखना...
कलम का प्रोटेस्ट
सर झुकाकर
मान लिया मैंने|

ऋता शेखर मधु

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

शीत सुहानी



सेदोकाशीत सुहानी- ऋता शेखर मधु
१.
शीत सुहानी
जुड़ी प्रीत-रुहानी
कमल पुष्प खिले
श्वेत बालों में
वर्षा वृद्ध हो गई
कहती है कहानी|
२.
नील धवल
स्फटिक-सा आकाश
कुमुदिनी से भरे
ताल-तडाग
नाच उठी चाँदनी
करे अमृत-वर्षा|
३.
शरद-नायिका
मस्त राजहंसी-सी
नव-वधू सी शोभा
झंकृत हुए
उर-वीणा के तार
लगा कास-अंबार|
४.
मन मोहती
पकी धान-बालियाँ
आकुल बन गए
कास-जवास
ढक गई धरती
शुभ्र-श्वेत पुष्पों से|
५.
शरद पूनो
शीत चन्द्र-हिरण
बरसाए किरण
चावल खीर
बन जाता सात्विक
आरोग्य औआत्मिक|

ऋता शेखर 'मधु'

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

मेरी क्रिसमस---दुआएँ ले लो हमारी



आज मुझसे किसी ने कहा कि वह अपनी बर्थडे विश मेरे ब्लॉग पर ही स्वीकार करेंगी...मैं उनके लिए कुछ लिखूँ...तो मंजु जी आपकी इच्छा शिरोधार्य है...
सबसे अच्छी बात है कि आज क्रिसमस भी है...सबको क्रिसमस की बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ !!
 

मंजुल मधुर स्मित आपकी
स्नेहमयी है वाणी
कर्तव्य संस्कार या सुर हो
बन जाती हैं अग्रणी
चंद्रमा की चाँदनी हैं
सब कहें अमृत-तरंगिणी
घर विद्यालय सभी जगह
थामतीं अवक्षेपणी
सूर्य-समान उज्जवल ऊर्जा
चमकें ज्यूँ आदित्य-पर्णी
दक्ष सुघढ़ गृहिणी हैं आप
हैं सरल मृदुभाषिणी

गीत खुशियों की आप गुनगुनाती रहें
हर कदम पर सदा मुस्कुराती रहें
आशियाने में कहकहे रहें आबाद सदा
लम्हा-लम्हा रौशनी झिलमिलाती रहे
हो मुबारक बहुत जनमदिन आपको
केक काटें और सबको खिलाती रहें|
HAPPY B’DAY MANJU JI:)
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ऋता शेखर 'मधु'

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

मेरी न्यायपालिका




जीवन के कुरुक्षेत्र में
दुविधा के क्षणों में
जब पार्थ बन जाती हूँ
कोई भी होता नहीं
ज्ञान कोई देता नहीं
कृष्ण कोई बनता नहीं
तब अपने मानस पटल पर
अपनी गीता खुद लिखती हूँ|

जब लम्हे विरोधी बन जाते
विशाल सागर में
लहरों पर डूबती उतराती
मरुस्थल की गर्म रेत पर चलती
क्रोध इर्ष्या खुशी गम
मस्तिष्क की परतों पर सोई
सभी संवेदनाओं को महसूसती
आज्ञाकारिणी बनी
किसी का सहारा
किसी का संबल बनती
खुद के लिए वनवास चुनती
अपनी रामायण रचती हूँ|

कभी निर्दोष होकर भी
कठघरे में अपराथी बनी
अपने ही तर्क-वितर्क से
अपनी वकील बनी
अंतरात्मा को जज बनाती हूँ
और उसके किए हर फैसले को
दिल से स्वीकार करती
अपनी न्यायपालिका
खुद बनती हूँ|

ऋता शेखर मधु

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

हम भी निहाल हो जाएँ



आज गगन से उतरी
शरद की धूप सुनहरी
कुदक फुदक कर भाग रही
जैसे थी कोई गिलहरी
कभी मुंडेर पर चढ़ती
कभी पेड़ों पर छुपती
लुका-छिपी के खेल में
बीत गई थी दुपहरी
ढोल की ढम-ढम लेकर
आई अनाथों की टोली
गूँज उठी थी कायनात में
व्याकुल सी स्वर-लहरी
निर्दोष-से मासूम मुख पर
छाई थी वेदना गहरी
कहाँ फरियाद करें अपनी
नहीं थी कोई कचहरी|

चलो
इक मुठ्ठी धूप चुराकर
उनपर हम बिखराएँ
हँसी के कुछ बीज को
उनके खेतों में बो आएँ
ममता का आँचल फैला
उनके सिर पर लहराएँ
कुछ मिश्री-सी लोरियाँ
गुनगुनाकर उन्हें सुनाएँ
कुछ रिमझिम-सी चाँदनी
उनके सपनों में बरसाएँ
कुछ फूलों की खुश्बू ले
उनकी गलियाँ महकाएँ
खिली-खिली मुस्कान पर फिर
हम भी निहाल हो जाएँ|
ऋता शेखर मधु