गूगल से साभार |
कैसे उतरूँ पार
भवसागर में हूँ फँसी, आओ तारणहार|
मुझे राह सूझे नहीं, कैसे उतरूँ पार|
कैसे उतरूँ पार, बहुत ही गहरा सागर|
पाना चाहूँ थाह, भर दो भक्ति से गागर|
बस तुम में ही आस, सुनो हे नटवर नागर|
खेना मेरी नाव, पार हो यह भवसागर||
ऋता शेखर 'मधु'
पहली बार ये छंद लिख रही हूँ|त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ|
विद्वतजनों का मार्गदर्शन मिले तो आभार होगा और मैं इनमें सुधार कर पाऊँगी|
बहुत भक्तिमयी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंshraddha se ot prot....bahut badhiya
जवाब देंहटाएंभाव विभोर होगए..बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ऋता जी...
जवाब देंहटाएंभक्ति भाव का मधुर एहसास हुआ..
सस्नेह.
Shradhdha aur vishwas se bhari rachna...
जवाब देंहटाएंBahut badhiya!
भक्ति रस में डूबा , बढ़िया कुंडलिया छंद.
जवाब देंहटाएंभवसागर से जीवन रुपी नैया को पार लगाने के लिए परमात्मा से भक्तिपूर्ण गुजारिश|
जवाब देंहटाएंक्या खूब कुंडलिया छंद है!
वाह! बहुत ही सुन्दर भक्तिपू्र्ण प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंआपकी छंद लिखने की कला विकसित हो|
शुभकामनाएँ|
भवसागर पार करने वाले तारणहार ..बहुत सुंदर भक्तिमय रचना .
जवाब देंहटाएंबढ़िया कुंडलिया छंद.
जवाब देंहटाएंभक्तिभाव से ओत-प्रोत सुंदर छंद।
जवाब देंहटाएंजीवन भवसागर के पार होने की कोशिश स्वयं को अभिव्यक्त करती सार्थक पोस्ट है बधाई |
जवाब देंहटाएंबस तुझ में मेरी आस,सुनोहे गिरधर नागर
जवाब देंहटाएंखे देना मेरी नाव,पार हो जाए ये भवसागर,
ऋता जी,...मेरी राय ये टीक रहता...
वाह!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छे भाव
NEW POST....
...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
...फुहार....: कितने हसीन है आप.....
बेहतरीन ...जो भाव था उसे सटीक शब्दों में ढाला
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंआभार, मेरा प्रोत्साहन उद्धत करने हेतु|
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव ...छंद का अपना ही सौंदर्य है
जवाब देंहटाएंसुन्दर अर्चना प्रभू के चरणों में ...
जवाब देंहटाएंअच्छा छंद ...
जवाब देंहटाएं♥
आदरणीया ऋता शेखर मधु जी
सस्नेहाभिवादन !
विलंब से पहुंचा हूं, तदर्थ क्षमा चाहता हूं ।
…लेकिन सच में आनंद आ गया आपकी इस प्रविष्टि को पढ़ कर …
त्रुटि कोई नहीं … इतना अच्छा लिखा है आपने ।
मुझे बहुत पसंद आई यह कुंडली !
अगर मैं लिखता , तो नाममात्र परिवर्तन के साथ ऐसे लिखता…
भवसागर में हूँ फँसी, आओ तारणहार !
मुझे राह सूझे नहीं, कैसे उतरूँ पार !?
कैसे उतरूँ पार, बहुत ही गहरा सागर |
कभी बुझे ना प्यास , भरो भक्ति से गागर ॥
बस तुम में ही आस, सुनो हे नटवर नागर !
खेना मेरी नाव, पार हो यह भवसागर ॥
आप चाहें तो इन मामूली परिवर्तनों को देखलें :)
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
उत्साहवर्धन के लिए आप सभी आदरणीय विद्वतजनों का हार्दिक आभार|आगे भी सद्भाव बनाए रखने की कृपा करें|
जवाब देंहटाएंआदरणीय राजेन्द्र सर,
आप तो छंद विधा के उत्कृष्ट रचनाकार हैं|
मेरी रचना में कोई त्रुटि नहीं,यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है|इस ब्लॉग पर मैंने घनाक्षरी और हरिगीतिका भी पोस्ट किया है जो लेबल में दिख रहा है|आप यदि उन छंदों पर अपनी बहुमूल्य राय देने की कृपा करें तो बहुत आभार होगा|
सादर
ऋता शेखर 'मधु'