किसी की बेबसी का तो, मजाक न उड़ाइए|
न आप भी विधाता के, निशाना बन जाइए|१|
सोच समझ के ही तो, उंगलियाँ उठाइए|
आपकी ओर भी हैं ये, इसे न भूल जाइए|२|
है उपदेश आसान, सबने हँस के दिए|
जो बात खुद पे आई, समंदर बहा दिए|३|
ज्ञान की ही पिपासा थी, कहनी कुछ बात थी|
'इटरनेट' देखा तो, साहित्य का दरिया था|४|
लदे वृक्ष फलों से जो, सदा ही वे झुके रहे||
क्षितिज पे धरा ही है, फ़लक को झुका रही|५|
ऋता शेखर 'मधु'
सोच समझ के ही तो, उंगलियाँ उठाइए|
जवाब देंहटाएंआपकी ओर भी हैं ये, इसे न भूल जाइए|२|
जी हाँ, गहरी बात लिए पंक्तियाँ
है उपदेश आसान, सबने हँस के दिए|
जवाब देंहटाएंजो बात खुद पे आई, समंदर बहा दिए|... आसान है बोलना , चलना तो कठिन हो जाता है :) थक जाता है आदमी !
बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,...
जवाब देंहटाएंMY NEW POST ...कामयाबी...
बहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंहै उपदेश आसान, सबने हँस के दिए|
जवाब देंहटाएंजो बात खुद पे आई, समंदर बहा दिए|३|………………सत्य कहती सार्थक प्रस्तुति।
बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन रचना,...
जवाब देंहटाएंbahut achchi baat.....
जवाब देंहटाएंसोच समझ के ही तो, उंगलियाँ उठाइए|
जवाब देंहटाएंआपकी ओर भी हैं ये, इसे न भूल जाइए|२|
....बिलकुल सच...बहुत गहन और सटीक प्रस्तुति..
गहरी बात कह दी... बहुत अच्छी प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसोच समझ के ही तो, उंगलियाँ उठाइए|
आपकी ओर भी हैं ये, इसे न भूल जाइए|२|
-यही समझ में आ जाय तो क्या बात है !
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
क्षितिज पे धरा ही है, फ़लक को झुका रही|५|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।