संज्ञा या विशेषण
दुनिया में
दो तरह के लोग होते हैं
कुछ वाकई दुखी होते हैं
पर झलकने नहीं देते,
कुछ दुखी होने का
दिखावा करते हैं
इस दिखावे पर उन्हें मिलता है
‘बेचारा’ या ‘बेचारी’का उपनाम|
कुछ वाकई सोए रहते हैं
और जग जाते हैं
हल्की दस्तक से,
जो दिखावा करते हैं
वे ढोल पीटने पर भी
नहीं जग सकते|
कुछ प्रभु में
दिल से अन्तरात्मा से
आस्था रखते हैं,
कुछ जोर जोर से भजन गाते
घंटियाँ बजाते
‘पुजारी’ का खिताब
जीत लेते हैं|
कुछ वाकई काम करते हैं
साफ सुथरे सलीकेदार,
कुछ दिखावा करके
‘कामकाजू’ शब्द से
विभूषित हो जाते हैं|
प्रकृति भी इससे अछूती नहीं
सूर्य बेचारा
सबको ऊर्जा देता
तपिश झेलता है
रौशनी देने के लिए
जलता रहता है,
किन्तु ‘सुन्दर’ और ‘शीतल’
ये विशेषण होते हैं
चन्द्रमा के साथ
जो न सुन्दर है
न ही शीतल है
ये गुण उसे
मिलते तो सूरज से ही हैं न!
अब सोचना ये है
‘संज्ञा’ बना जाए
या ‘विशेषण’???
ऋता शेखर ‘मधु’
विचारों का मंथन शुरू हो गया| बढ़िया पोस्ट है | मेरा ख्याल है की विशेषण ही बना जाये!
जवाब देंहटाएंसंज्ञा तो हूँ ही , विशेषण चाहिए
जवाब देंहटाएंसंज्ञा के साथ विशेषण भी हो तो बात बने ..
जवाब देंहटाएंदिखावा हर कहीं है..... निश्चित रूप से संज्ञा बनाना सार्थक होगा
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रश्न उठाया है,वाह.
जवाब देंहटाएंजो दिखावा करते हैं
जवाब देंहटाएंवे ढोल पीटने पर भी
नहीं जग सकते|
सच है
बहुत बढ़िया विचार मंथन
Wonderful,sahaj& saral but meaningful
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