बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

क्यारी-क्यारी लहराई, डाली-डाली मुसकाई-घनाक्षरी छंद




क्यारी-क्यारी लहराई, डाली-डाली मुसकाई,
ऋतुराज के आने से, छटा बसंती छाई|

सुमन-सितारे टँके, प्रकृति-परिधान में,
किसलय कोंपलों ने, ले ली है अँगड़ाई|

चहचह से चहकी, उषा मधुरहासिनी,
मंद-मंद बयार से, कलियाँ लहराईं|

पुष्पराग उड़ चला, चँदोबा बन के टँगा,
गेहूँ के गोरे गालों पे, तितली मँडराई|१|



मतवाले भौंरे डोलें, कुसुमों के अधरों पे,
पुखराज-सी बगिया, झूम के इठलाई|

पीले गुलाल के संग, निखरे गेंदा के रंग,
वागीशा की वीणा गूँजी, रस-रागिनी गाई|

जनक-वाटिका सोहे, राम जानकी से मिले,
इस मधु-मौसम में, सीता थी हरषाई|

ऋतूनां कुसुमाकरः,गीता-वाणी श्रीकृष्ण की
प्रभु ने पार्थ को अपनी महता बताई|२|

ऋता शेखर मधु
ऋतूनां कुसुमाकरः(ऋतुओं में मैं बसंत हूँ|)

8 टिप्‍पणियां:

  1. पुष्पराग उड़ चला, चँदोबा बन के टँगा,
    गेहूँ के गोरे गालों पे, तितली मँडराई|१|

    ....बहुत खूब! बहुत मनभावन प्रकृति चित्रण...

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  2. आपके उत्‍कृष्‍ठ लेखन का आभार ।

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  3. जनक-वाटिका सोहे, राम जानकी से मिले,
    इस मधु-मौसम में, सीता थी हरषाई|...सुभग सुहाना दृश्य आँखों में घूम गया

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  4. मतवाले भौंरे डोलें, कुसुमों के अधरों पे,
    पुखराज-सी बगिया, झूम के इठलाई|

    पीले गुलाल के संग, निखरे गेंदा के रंग,
    वागीशा की वीणा गूँजी, रस-रागिनी गाई|

    अद्भुत वर्णन...शब्द शब्द में बसंत भर दिया है आपने...कमाल की रचना.

    नीरज

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  5. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  6. बहुत खूब! बहुत मनभावन प्रकृति चित्रण.

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  7. बहुत सुन्दर..रंगीला वर्णन..

    सस्नेह.

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