क्यारी-क्यारी लहराई, डाली-डाली मुसकाई,
ऋतुराज के आने से, छटा बसंती छाई|
सुमन-सितारे टँके, प्रकृति-परिधान में,
किसलय कोंपलों ने, ले ली है अँगड़ाई|
चहचह से चहकी, उषा मधुरहासिनी,
मंद-मंद बयार से, कलियाँ लहराईं|
पुष्पराग उड़ चला, चँदोबा बन के टँगा,
गेहूँ के गोरे गालों पे, तितली मँडराई|१|
मतवाले भौंरे डोलें, कुसुमों के अधरों पे,
पुखराज-सी बगिया, झूम के इठलाई|
पीले गुलाल के संग, निखरे गेंदा के रंग,
वागीशा की वीणा गूँजी, रस-रागिनी गाई|
जनक-वाटिका सोहे, राम जानकी से मिले,
इस मधु-मौसम में, सीता थी हरषाई|
ऋतूनां कुसुमाकरः,गीता-वाणी श्रीकृष्ण की
प्रभु ने पार्थ को अपनी महता बताई|२|
ऋता शेखर ‘मधु’
‘ऋतूनां कुसुमाकरः’(ऋतुओं में मैं बसंत हूँ|)
पुष्पराग उड़ चला, चँदोबा बन के टँगा,
जवाब देंहटाएंगेहूँ के गोरे गालों पे, तितली मँडराई|१|
....बहुत खूब! बहुत मनभावन प्रकृति चित्रण...
आपके उत्कृष्ठ लेखन का आभार ।
जवाब देंहटाएंजनक-वाटिका सोहे, राम जानकी से मिले,
जवाब देंहटाएंइस मधु-मौसम में, सीता थी हरषाई|...सुभग सुहाना दृश्य आँखों में घूम गया
मतवाले भौंरे डोलें, कुसुमों के अधरों पे,
जवाब देंहटाएंपुखराज-सी बगिया, झूम के इठलाई|
पीले गुलाल के संग, निखरे गेंदा के रंग,
वागीशा की वीणा गूँजी, रस-रागिनी गाई|
अद्भुत वर्णन...शब्द शब्द में बसंत भर दिया है आपने...कमाल की रचना.
नीरज
बेहतरीन बासंती रचना,लाजबाब प्रस्तुतीकरण..
जवाब देंहटाएंNEW POST...40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर...
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! बहुत मनभावन प्रकृति चित्रण.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..रंगीला वर्णन..
जवाब देंहटाएंसस्नेह.