कवि बनोगे कैसे!.
प्यार होगा नहीं
रस बरसेंगे कैसे!
पैर फिसलेंगे नहीं
सँभलना सीखोगे कैसे!
दिल दुखेगा नहीं
सावन टपकेंगे कैसे!
खुशियाँ मिलेंगी नहीं
बसंत हसेंगे कैसे!
माँ बनोगी नहीं
धरा कहलाओगी कैसे!
पिता बनोगे नहीं
आकाश समझोगे कैसे!
जुदाई होगी नहीं
दिल तड़पेंगे कैसे!
मिलन होगा नहीं
एहसास जगेंगे कैसे!
ताने मिलेंगे नहीं
‘आह’ निकलेगी कैसे|
सौन्दर्य दिखेगा नहीं
‘वाह’ बोलोगे कैसे!
अभाव मिलेंगे नहीं
चाह आएगी कैसे!
मदद मिलेगी नहीं
एहसान जतेंगे कैसे!
मदद करोगे नहीं
कृतज्ञता पाओगे कैसे!
भव-सागर में तैरोगे नहीं
किनारा मिलेगा कैसे!
सपने देखोगे नहीं
शिखर पाओगे कैसे!
ये बातें हों नहीं
भावना जगेगी कैसे!
भावना जगे नहीं
लेखनी चलेगी कैसे!
बोलो, कवि बनोगे कैसे!!!
ऋता शेखर ‘मधु’
शास्वत सत्य...बहुत प्रेरक और सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंमन में भाव आने पर ही कविता जन्म होता है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,बेहतरीन अच्छी रचना ,.....
MY NEW POST...आज के नेता...
ज़रूरी है हर व्यूह से निकलना
जवाब देंहटाएंहूँ...भाव ही शब्दों को जन्म देते हैं.....
जवाब देंहटाएंवाह गज़ब के भाव संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंstya lekhan
जवाब देंहटाएंये बातें हों नहीं
जवाब देंहटाएंभावना जगेगी कैसे!
भावना जगे नहीं
लेखनी चलेगी कैसे!
बोलो, कवि बनोगे कैसे!!!
.सशक्त रचना .
कविता का भाव बहुत ही अच्छा लगा । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सही सवाल किया हैं उत्तर भी निहित हैं
जवाब देंहटाएंyadi aap mere dwara sampadit kavy sangrah mein shamil hona chahti hain to sampark karen
जवाब देंहटाएंrasprabha@gmail.com
वाह, ये तो बड़ी सुंदर कविता है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
माने या न माने पर
जवाब देंहटाएंऋता जी, आप तो कवि बन चुकी हैं.
आपकी भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति से
मन्त्र मुग्ध हूँ.
शानदार प्रस्तुति के लिए आभार,जी.