क्यूँ कभी-कभी
उमड़ आते भाव
भिगोते जाते
हृदय की परतों को
कई भूली यादों को|१|
क्यूँ कभी-कभी
छलक उठते हैं
धैर्यहीन से
अँखियों के गागर
दिखलाते सागर|२|
क्यूँ कभी-कभी
मन भटकता है
किसी खोज में
करूँ कुछ तो ऐसा
यादगार जो बने||३|
क्यूँ कभी-कभी
हथेली मसलते
बेबस बन
छूट रहा हो जैसे
किसी निज का साथ|४|
क्यूँ कभी-कभी
होकर भी न होते
सबके साथ
पथराई सी आँखें
देखती हैं सन्नाटे|५|
क्यूँ कभी-कभी
सँभल नहीं पाते
रिश्तों की डोर
न अहं अहंकार
फिर भी टूट जाते|६|
क्यूँ कभी-कभी
निर्दोष होकर भी
खुद को पाते
कटघरे में स्तब्ध
बन जाते निःशब्द|७|
क्यूँ कभी-कभी
होता है एहसास
वक्त जा रहा
कर न पाए वह
जो दिल ने चाहा था|८|
क्यूँ कभी-कभी
सुँदर सा सपना
लगे जीवन
कभी डरावना सा
विकट अँधेरा सा|९|
क्यूँ कभी-कभी
हमें कैद करते
प्रश्नों के घेरे
बहुत सारे ऐसे
जो हैं अनुत्तरित|१०|
क्यूँ कभी-कभी
दुनियादारी नहीं
आ जाते भाव
दार्शनिकता भरे
जग बेमानी लगे|११|
क्यूँ कभी-कभी
मन बनता जाता
अँधरी गुफ़ा
उलझनों की दास्ताँ
हो नहीं पाता बयाँ|१२|
ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत सुंदर ऋता जी..............
जवाब देंहटाएंबेहतरीन तांका.....
भाव भी अनुपम....
"क्यूँ कभी-कभी
निर्दोष होकर भी
खुद को पाते
कटघरे में स्तब्ध
बन जाते निःशब्द|
लाजवाब रचना.....
सस्नेह
अनु
सशक्त प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव |
आभार ||
क्यूँ कभी-कभीसुँदर सा सपना लगे जीवनकभी डरावना साविकट अँधेरा सा|
जवाब देंहटाएंवाह!!!!!!बहुत सुंदर सशक्त रचना,अच्छी प्रस्तुति........वेहतरीन
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
क्यूँ कभी-कभी
जवाब देंहटाएंनिर्दोष होकर भी
खुद को पाते
कटघरे में स्तब्ध
बन जाते निःशब्द
वाह...अद्भुत...बेजोड़ रचना...
नीरज
man par niyantran bahut muhkil hai...isliye kabhi ye to kabhi vo hota hi rahta hai
जवाब देंहटाएंक्यूँ कभी-कभी
जवाब देंहटाएंहोकर भी न होते
सबके साथ
पथराई सी आँखें
देखती हैं सन्नाटे|५|
....बहुत खूब ! बहुत गहरे अहसास..उत्कृष्ट प्रस्तुति...
आभार
bahut sundar bhav aur kyon ko kyon hi rahne dijiye kyonki iska ant nahi hona hi achcha hai
जवाब देंहटाएंक्यूँ कभी-कभी
जवाब देंहटाएंहोता है एहसास
वक्त जा रहा
कर न पाए वह
जो दिल ने चाहा था|......बहुत सुंदर ऋता लाजवाब रचना............
होता है कभी कभी यादों की गलियों से गुजरना
जवाब देंहटाएंइस समाज में क्यूँ का कोई ओर छोर नहीं है|
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सारे क्यूँ को बहुत सुन्दर तरीके से संकलित किया है|
इस संबंध में मेरे तरफ से एक तांका पेश है...
क्यूँ का क्या कहूं
है ये जीवन रीत
कभी रुलाए
कभी हँसाता जाए
परिस्थिति है राज|
क्यूँ कभी-कभी
जवाब देंहटाएंछलक उठते हैं
धैर्यहीन से
अँखियों के गागर
दिखलाते सागर|
इन समस्त क्यूं का उत्तर अपने भीतर ही ढूंढना होगा।
बहुत अच्छी रचना।
क्यूँ कभी-कभी
जवाब देंहटाएंनिर्दोष होकर भी
खुद को पाते
कटघरे में स्तब्ध
बन जाते निःशब्द|७|
कभी कभी कहाँ ? अक्सर ऐसा होता है ... बहुत सुंदर रचना ....
क्यूँ कभी-कभी
जवाब देंहटाएंनिर्दोष होकर भी
खुद को पाते
कटघरे में स्तब्ध
बन जाते निःशब्द|
खूबसूरत रचना !
क्यूँ कभी-कभी
जवाब देंहटाएंहोता है एहसास
वक्त जा रहा
कर न पाए वह
जो दिल ने चाहा था
ये तो हमेशा सोचते हैं हम!
अच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएं