हे प्रभु!
हे यीशु!
सदियों पहले
आवाज़ उठाई थी तुमने
अंधविश्वास के ख़िलाफ़
और ठोक दिए गए थे
कीलों से
सलीब पर,
तुम प्रभु थे
तुम्हें मालूम था
आने वाले समय में
हर वो मनुष्य ठुकने वाला है
जो आवाज उठाएगा
अराजकता के खिलाफ़
बेईमानी के खिलाफ़
हिंसा के ख़िलाफ़
झूठ के ख़िलाफ़
सलीब पर चढ़ा
वो कुछ कर न पाएगा
क्योंकि
सच्चाई विनीत होती है
ईमानदारी नम्र होती है
नैतिकता सर झुकाए रहती है
उनके पास वो गरल नहीं
जो सज़ा दे पाए
वो भी हाथ जोड़े
सिर्फ़ यही दोहराएगा
हे प्रभु ! उन्हें माफ़ कर!
उन्हें माफ़ कर!
ऋता शेखर ‘मधु’
सार्थक पोस्ट है आपकी आभार.क्या कीजे यही होता आया है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव प्रस्तुति,बेहतरीन पोस्ट,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...फुहार....: दो क्षणिकाऐ,...
अच्छे शब्द संयोजन के साथ सशक्त अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
सुन्दर और सशक्त भावाव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं"हे प्रभु! उन्हें माफ कर..."
जवाब देंहटाएंक्योंकि उन्हें नहीं पता की वे क्या कर रहे हैं।
बेहतरीन रचना ।
सादर
माफ़ करने वाला अपराध ऐसा जघन्य हो तो माफ़ करना पाप है ...
जवाब देंहटाएंसच्चाई विनीत होती है
जवाब देंहटाएंईमानदारी नम्र होती है
नैतिकता सर झुकाए रहती है
उनके पास वो गरल नहीं
सुंदर प्रस्तुति ...
bahot achchi lagi......
जवाब देंहटाएंउन्हें माफ़ी मिली की नहीं मिली यह तो प्रभु ही जाने|परन्तु सच्चाई का विनीत होना, ईमानदारी का नम्र होना, नैतिकता का सर झुकाना ही वो गरल है जो हाथ जोड़ कर भी सज़ा दे जाता है|
जवाब देंहटाएंsach mein aisa hi hota hai
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