मनवाँ उनका थिरक रहा
मिल गया इस लोक में
वो पथ
जिसे
किसी ने
सजाया सँवारा
सुवासित फूलों को बिछाया
बस कदम धर चल दिए
श्रम के मोती जरा न बहे
खुश किस्मत हैं वो
मिल जाते जिन्हें
बने बनाए रास्ते
किन्तु उस पथ की तो सोचो
जो ले जाएँगे उस लोक
उसे तो स्वयं ही है सजाना
सुकुसुमित विचार है बिछाना
सद्भावों के इत्र छिड़क
प्यार की गंगा है बहाना
उस पथ का हमराही न कोई
बस साथ चलेंगे
अपने ही कर्म अपने ही धर्म
निश्छलता और निःस्वार्थता
स्वर्ग द्वार के दो पट नाम
इन्हें यहाँ है अपनाना
फल वहाँ है पाना|
ऋता शेखर ‘मधु’
खुश किस्मत हैं वो
जवाब देंहटाएंमिल जाते जिन्हें
बने बनाए रास्ते....वाह: बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
वाह ...बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंनिश्छलता और निःस्वार्थता
जवाब देंहटाएंस्वर्ग द्वार के दो पट नाम
इन्हें यहाँ है अपनाना
फल वहाँ है पाना|... यही सार है जीवन का
सुन्दर अभिव्यक्ति.. यही है जीवन का सार । मेरे ब्लॉग पर नई पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति,.....
जवाब देंहटाएंRECENT POST...फुहार....: रूप तुम्हारा...
निश्छलता और निःस्वार्थता
जवाब देंहटाएंस्वर्ग द्वार के दो पट नाम
इन्हें यहाँ है अपनाना
फल वहाँ है पाना|
सही सीख है ....शुभकामनायें आपको !
Bahut Sunder ....
जवाब देंहटाएंसच कहा है उस लोक जाने का सभी का रास्ता अलग अलग ही है ... और स्वयं ही उसका निर्माण करना होता है ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव लिए सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ...वहां तो अपने कर्मों की गति ही हमें पहुंचाएगी ......बहुत सुन्दर !
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