दिलबाग विर्क जी की मार्च में प्रकाशित हाइकु संग्रह-''माला के मोती " में मेरी समीक्षात्मक भूमिका
श्री दिलबाग विर्क को मैं अंतरजाल के माध्यम से जानती हूँ | अंतरजाल पर उनके अपने ब्लॉग्स हैं | इसके अलावा वे कई अन्य साझा ब्लॉग्स पर सक्रियता से योगदान देते हैं | मैं उनकी रचनाएँ अंतरजाल पर पढ़ती रहती हूँ जो मुझे बेहद पसंद आती हैं | लगभग हर विधा जैसे छंद , ग़जल , कविता , समीक्षा , लघुकथा , हाइकु , ताँका इत्यादि में उन्हें महारथ हासिल हैं|
प्रस्तुत पुस्तक 'माला के मोती' एक हाइकु संग्रह है | इसमें हाइकुओं की संख्या 518 है | अपने नाम के अनुरूप इस हाइकु संग्रह रूपी माला में हर हाइकु चमकीला मोती है | विचारों के गहरे सागर से निकला हर एक मोती अपनी चमक की ओर आकर्षित कर लेता है | बहुत सारे भावों से सजे हर मोती के अपने ही रंग हैं जो हर वर्ग के पाठकों को अवश्य पसंद आएँगे ऐसा मुझे विश्वास है | मैंने विर्क जी के हाइकुओं पर आधारित हाइगा बनाया है | उनके हाइकु इतने सारगर्भित होते हैं कि मुझे उसके अनुसार उच्च कोटि के चित्र बहुत ढूँढने पर ही मिल पाते हैं | जीवन और समाज के हर पहलु पर लिखे गए उनके हाइकु बहुत बड़े बड़े भाव प्रकट करते हैं |
1)सर्वप्रथम मैं उन हाइकुओं का जिक्र करना चाहू्गी जिनसे उनकी देशभक्ति की प्रबल भावना प्रकट होती है ------
भारतीयता / हमारी जाति भी है / और धर्म भी |
भारतीय हो/ गर्व करना सदा/इसके लिए |
भारत मेरा/ ये कहने का हक/ न छीनों तुम |
देशवासियो/ मर मिटना सदा/ देश के लिए |
2)राष्ट्रभाषा के प्रति प्रेम की बानगी देखिए-----
नहीं स्वीकार्य/ हिंदी के मूल्य पर/ मातृभाषा भी |
भाषा जोडती/ लोगों को आपस में/ तोडती नहीं |
माला के मोती/ हैं राज्य भारत के/ हिंदी का धागा |
3)राजनीति के प्रति उनके बेबाक हाइकु बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करते हैं -------
हर शाख पे/ बैठ गए हैं उल्लू/ खुदा ! खैर हो |
बुरे हैं नेता/ हैरानी किसलिए/ आदमी वे भी |
विकल्प कहाँ/ जनता के सामने/ राजनीति में |
अच्छे व्यक्ति थे/ राजनीति में कूदे/ बुरे हो गए |
न कर्म में है/ न शुचिता सोच में/ वस्त्र सफेद |
मिले सबको/ वो हाथ जोडकर/ नेता ही होगा |
खादी जारी है/ फैंक चुके चरखा/ कूड़ेदान में |
4)हाइकु में प्रयोग किए गए उनके प्राकृतिक बिम्ब इतने सटीक होते हैं जो सीधे मन में उतर जाते हैं-
बदलो सोच/ पंक न देखकर/ पंकज देखो |
मीठा बोलना/ कोयल की कुहुक/ देती ये संदेश |
नियमों पर/ चलती पूरी सृष्टि/हम क्यों नहीं ?
5) न्याय व्यवस्था पर करारा प्रहार किया है जो वस्तुस्थिति को बिल्कुल स्पष्ट कर देते हैं -------
न्याय न कहो/ देर से मिला न्याय/ अन्याय ही है |
नौ दिन बीते/ चला देश का न्याय/ अढाई कोस |
6) निराश मन को वे हाइकु में इस तरह से समझाते हैं ---------
पलायन तो/ समाधान नहीं है/ समस्याओं का |
बनो निडर/ जीतने से रोकता/ हारने का डर |
अवसर को/ बटोरना सीख लो/ दोनों हाथों से |
पास जिसके/ हिम्मत की बैसाखी/ अपंग नहीं |
7)इस हाइकु में बोन्साई शब्द का अनूठा प्रयोग उनकी साहित्यिक कला को बखूबी दर्शाता है -----
मानव मूल्य/ वर्तमान युग में/ बोन्साई हुए |
8)गरीबों के जीवन का कितनी सहजता से वर्णन किया है-ये देखिए --------
जमीं बिस्तर/ छत्त आसमान है/ ये भी जीवन |
9)मानव स्वभाव को वर्णित करते ये हाइकु कितने सटीक हैं इन्हें देखकर पता चलता है ---------
गीता पढता/ फल की चिंता मन/ छोड़ता नहीं |
ये दुनिया है/ झुकते पलड़े की/ तेरी न मेरी |
10) उनकी सकारात्मक सोच का उदाहरण हैं ये हाइकु -------
कैसे आएँगी/ बंद दरवाजों से/ सूर्य रश्मियाँ |
अधिकार हैं/ तो कर्तव्य भी होंगे/ याद रखना |
आधा भरा था/ दिखा है आधा खाली/ बात सोच की |
कलाकार वो/ पत्थरों में ढूंढता/ कलाकृति जो |
खौफ, खतरे/ सिर्फ डराते नहीं/ जगाते भी हैं |
खुदा पाना है ?/ काफी एक योग्यता/ मैं को मारना |
भारी पड़ता/ अँधेरी रात पर / एक चिराग |
11) एक सपाटबयानी देखिए --------
खोया हमने/ भविष्य की खातिर/वर्तमान को |
12) इस छोटी सी हाइकु कविता में कितना बड़ा आवाहन छुपा है -----
ओ परदेसी/ लौट आओ वतन/ पुकारें रास्ते |
13) किसानों के सपने नई फसल के साथ किस तरह जुड़े रहते हैं वह इस हाइकु से स्पष्ट है------
लहलहाई/ गेंहूँ की वल्लरियाँ/जागे स्वप्न |
14) कुछ भावपूर्ण हाइकुओं पर भी नजर डाल लेते हैं -------
ले अंगडाई/ बसंत में जीवन/फूटें कोंपलें |
बरसने दो/ दिल की जमीं पर/ प्यार की बूँदें |
15)बुजुर्गों की और राष्ट्र की उपेक्षा बताता है यह हाइकु-----
पेड़ को भूले/ टहनियों से प्यार/ कितने मूर्ख ?
16) नारी जीवन सदियों से नारी होने का मूल्य पुरुष-प्रधान समाज में चुकाती आई है|
सामाजिक कुरीतियों का शिकार होती आई है| ये हाइकु इसका स्पष्ट उदाहरण हैं -------
न मारो बेटी/ वधू भी तो होती है/ किसी की बेटी |
घट रही है/लडकियों की संख्या/ दोषी है कौन ?
नारी को न्याय/ राम भी न दे पाया/ देखो दुर्भाग्य |
भ्रूण की हत्या/ है मातृत्व की हत्या /क्यों चुप है माँ ?
17)अन्त में वह हाइकु जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया --------
आरक्षण हो/ जातिवाद न रहे/ कैसे संभव ?
मन्दिर में है/ प्रतिरूप खुदा का/ बच्चे में खुद |
नमस्कार
ऋता शेखर ‘मधु’
इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंसराहनीय समीक्षा
जवाब देंहटाएंशानदार हाइकु है बधाई,यक़ीनन हिंदी ब्लोगिंग हिन्दा के प्राचर प्रसार का सशक्त माध्यम है ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा,"माला के मोती" के प्रकासन के लिए दिलबाग जी को एवं पुस्तक से परिचय कराने के लिए आपको बहुत२ बधाई शुभकामनाए,...
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
मैं भी नियमित रूप से पढ़ती हूँ दिलबाग जी को...........बेहतरीन रचनाकार...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा ऋता जी...
आपको एवं दिलबाग जी को ढेरो शुभकामनाएँ एवं बधाई.
सस्नेह
बहुत सुन्दर समीक्षा...
जवाब देंहटाएंक्या सुंदर समीक्षा प्रस्तुत की ऋता जी जिसने हायकु के प्रति आकर्षण और बढ़ा दिया. सारे उद्धृत हायकू लाजवाब हैं.
जवाब देंहटाएंइस पुस्तक के लिये दिलबाग जी को ढेरों ढेर बधाईयाँ.
आदरणीय ऋता शेखर मधु जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
समीक्षात्मक भूमिका और ब्लॉग पर पोस्ट द्वारा अधिक से अधिक साहित्य प्रेमियों को पुस्तक से परिचित करवाने के लिए मैं आपका तहे-दिल से आभारी हूँ
सराहनीय समीक्षा,सार्थक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंन मारो बेटी
जवाब देंहटाएंवधू भी तो होती है
किसी की बेटी |
बहुत अच्छे लिखे गए हैं ...
दिलबाग विर्क जी को बहुत बहुत बधाई ...
ऋता जी बहुत अच्छी समीक्षा की आपने ....
वहुत खूब !!
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