जंग जारी है
दिल कहता है
आकाश विस्तृत है
तुम्हारे पास पंख है
उड़ो , नाप लो गगन
दिमाग कहता है
दायरा सीमित रखो
दिल और दिमाग
में
जंग जारी है...
जो सोचते हो
उतार दो पन्नों पर,
हू-ब-हू
बिना लाग लपेट के
कविता कहती
उसमें नदी झरने
तितली और फूल भरो
चाँद सितारे भरो
शब्द और भाव में
जंग जारी है...
दुखी हो!
झलकने दो
पर याद रखो
‘तुम
जो हँसोगे तो दुनिया हँसेगी
रोओगे तुम तो न रोएगी दुनिया’
मायूसी और मुस्कुराहट में
जंग जारी है...
शब्द-शरों से बिंधो मत
बाणों का रुख पलट दो
जो झटकें उन्हे झटक दो
क्या कहा ?
यह सीखा नहीं
सोचते हो
सभ्य और असभ्य में
फिर अन्तर ही क्या
मौन और प्रत्युत्तर में
जंग जारी है...
ऋता शेखर ‘मधु’
मौन और प्रत्युत्तर में
जवाब देंहटाएंजंग जारी है...
जंग का भी सार्थक विश्लेषण ... बहुत सुंदर रचना
शब्द-शरों से बिंधो मत
जवाब देंहटाएंबाणों का रुख पलट दो
जो झटकें उन्हे झटक दो
क्या कहा ?
यह सीखा नहीं
सोचते हो
सभ्य और असभ्य में
फिर अन्तर ही क्या
मौन और प्रत्युत्तर में
जंग जारी है...जब मौन है इस जंग में तो उम्मीदें बाकी हैं
दिल और दिमाग का जंग.....बहुत सुन्दर भाव..
जवाब देंहटाएं'jang jaari hai' bahut achchha
जवाब देंहटाएंlaga aapki is post ko padhkar.
Abhi US men hun,devnaagri meen comment n kar paane ke
liye kshama chahata hun.
मौन और प्रत्युत्तर ्की जंग का सार्थक चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंसभ्य और असभ्य में
जवाब देंहटाएंफिर अन्तर ही क्या
मौन और प्रत्युत्तर में
जंग जारी है...,,,,,,सार्थक चित्रण,,,,,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बेहतरीन भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार
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