मास्साब...
एक मास्साब थे...वही मतलब मास्टर साहब...नौकरी नहीं मिली इसलिए घर घर जाकर
ट्युशन पढ़ाते थे. सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे.विचार सचमुच उच्च थे
क्योंकि पढ़ाने में कभी लापरवाही नहीं दिखाते थे और कोर्स भी समय पर पूरा करते थे.
गणित जैसे कठिन विषय को बिल्कुल आसान कर देते थे.किन्तु सादा जीवन अपनाना उनकी
मजबूरी थी.जब स्कूल में ही पढ़ते थे तो उनके पिताजी का देहान्त हो गया था.माँ और
छोटे-छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी उनपर आ गई थी.तभी से ट्युशन पढ़ाना शुरु किया.सबकी
जरूरतें पूरी करते करते अपने बारे में सोचने की फुर्सत नहीं मिली.कभी अपने लिए
फुलपैंट भी नहीं सिलवाया.पाजामा और शर्ट ही उनकी पोशाक बन गई.शादी भी नहीं कर पाए.
सभी घरों में उनकी बहुत इज्जत थी.इसी तरह दिन कट रहे थे.समय के साथ साथ भाई बहन
बड़े हुए.बहनों की शादियाँ हुईं.भाई अच्छी-अच्छी नोकरियों में चले गए.माँ और
मास्साब साथ रहने लगे.माँ की सेवा वे तन मन से करते थे.
भाई ने नया मकान बनवाया तो मास्साब बहुत खुश हुए.भाई ने गृह प्रवेश में बुलाया
पर साथ ही एक शर्त लगा दी कि पाजामे की जगह फुलपैंट पहननी होगी.यह बात मास्साब को
अन्दर तक दुखी कर गई.उन्होंने भाई के यहाँ जाने का विचार त्याग दिया.इस कहानी में
यह निर्णय आप पर है कि मास्साब और उनके भाई में कौन सही थे|
ऋता शेखर ‘मधु’
मास्साब के भाई .... पूरी ज़िन्दगी की तस्वीर बदलने की कोशिश , उनके त्याग का अपमान है
जवाब देंहटाएंअपनी अपनी जगह दोनों ही सही है..भाई बद्लाव चाहता था जो प्रकृति का नियम है..मास्टर सहाब अपनी पूरी जिन्दगी की कमाई हुई छबी को धुमिल करना नही चाहते थे ...
जवाब देंहटाएंमास्साब का निर्णय सही था,......
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
गलत कोई नहीं था.......
जवाब देंहटाएंबस एक दूसरे की भावनाओं को दोनों ही नहीं समझ सके........
चोटी सी बात का फ़साना बन गया.....
सस्नेह
अनु
शर्त और गुज़ारिश में अंतर होता है.. अगर भाई ये कहते कि उनकी इच्छा है कि मास्साब फुल-पैंट में आयें तो भला कुछ बात होती.. शर्त तो अंतर का अपमान ही है..
जवाब देंहटाएंआलेख अच्छा है, आपकी final टिपण्णी का इंतज़ार रहेगा.. कि आखिर आपके विचार में क्या सही है क्या ग़लत.. :)
सादर
मधुरेश
अजीब नियम हैं - घर था या जिमखाना क्लब?
जवाब देंहटाएंआपकी बात सही है मधुरेश...
जवाब देंहटाएंशर्त आदेश का ही दूसरा नाम है और यह मान्य नहीं हो सकता.
प्यार से कहा जाता तो वे अवश्य मानते...जिस भाई को यहाँ तक पहुँचाया उसकी बातें मानने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए.
दूसरी बात भी है...छोटे भाई को भी उनका रूप स्वीकार्य होना चाहिए था...स्नेह के रिश्ते में ये बातें मायने नहीं रखतीं.
बेशक, मास्टर जी का निर्णय सही था।
जवाब देंहटाएंमास्साब बिलकुल सही थे...स्वाभिमान भी तो कुछ मायने रखता है...
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