मंगलवार, 1 मई 2012

हे मर्यादापुरुषोत्तम...





हे श्रीराम
हे मर्यादापुरुषोत्तम
तुम तो रोम रोम में बसे हो
पर कभी कभी
तुम पर बहुत गुस्सा आता है
बेतुकी लगी न यह बात!
क्योंकि तुम प्रभु हो
प्रातः स्मरणीय हो
आराध्य देव हो
देव से गुस्सा कैसा!!
शिकायत कैसी!!!
पर गुस्सा तब आता है
जब सोचती हूँ
सीता के बारे में|

आदर्श पुत्र बनकर के
तुमने वनवास स्वीकार किया

चौदह वर्ष के विकट काल में
तुम अकेले वन में न भटको
तुम्हे साथ देने की खातिर उसने
सब सुखों का त्याग किया था
हे राम,
आखिर क्यों उस अनुगामिनी का
तुमने यूँ परित्याग किया था?

अशोक वाटिका में बैठी बैठी वह
नजरें नीची कर अड़ी रही
तुम्हारा नाम ही जपती जपती
दिन- रात वह पड़ी रही थी
हे राम,
आखिर क्यों बेकसूर होकर भी वह 
अग्नि के बीच खड़ी हुई थी ??

तुम तो सीता को जीत लाए थे
सहगामिनी को फिर से पाकर
मन में खूब हरषाए थे
जानकी ने तुम्हारे शौर्य को
सदा ही नमस्कार किया था
हे राम,
किस मर्यादा की खातिर तुमने
फिर उसका तिरस्कार किया था ???

तुम्हारा कुलदीपक संजोए
जननी बनने को वह तत्पर थी
जब तुम्हारा साथ पाने का
उसको पूर्ण अधिकार था
हे राम,
किसे प्रसन्न करने की खातिर तुमने
उस ममतामयी का बहिष्कार किया था ????

नन्हे पुत्रों की किलकारी सुनने को
क्या कभी तुम्हारा मन नहीं ललचाया
लघु पादप को सींचने में
सीता ने बहुत सितम उठाया 
हे राम,
क्यूँ पिता बन कर भी तुमने
जिम्मेदारियों को नहीं निभाया ?????

हे राम,
तुम अन्तर्र्यामी थे
तुम्हें मालूम था
सीता के साथ अन्याय हुआ था
तुमने और सीता ने तो
सिर्फ मानव स्वभाव चित्रित किया था
सीता ने भारतीय नारी के अनुगामिनी स्वभाव को
और तुमने.................................???

ऋता शेखर मधु’   



12 टिप्‍पणियां:

  1. अशोक वाटिका में बैठी बैठी वह
    नजरें नीची कर अड़ी रही
    तुम्हारा नाम ही जपती जपती
    दिन- रात वह पड़ी रही थी
    हे राम,
    आखिर क्यों बेकसूर होकर भी वह
    अग्नि के बीच खड़ी हुई थी ??...जवाब की प्रत्याशा में सीता भी है

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  2. प्रभु की बात प्रभु जाने ... पर हम आम इंसान के मन में तो ऐसे प्रश्न उठाने स्वाभाविक हैं

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  3. बहुत बढ़िया ऋता जी............

    भगवान राम से ये शिकायत मुझे भी है.............


    सस्नेह.

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  4. हे राम,
    किस मर्यादा की खातिर तुमने
    फिर उसका तिरस्कार किया था ???

    बहुत सुंदर प्रस्तुति..भावमय सार्थक रचना,....

    MY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....

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  5. हर मन को झकझोरता प्रश्न किया है।

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  6. बहुत सुंदर सार्थक रचना,....

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  7. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ...

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  8. आम आदमी का मन तो यही पूछ बैठता है पर क्या ये सच है ... राम और सीता के चरित्र कों जानने वाले क्या ऐसा सोच भी सकते हैं की ये अन्याय था ... उनके मन कों समझने के लिए शायद उनके स्तर उठाना होगा तो स्वतः ही सब समझ आ जायगा ...

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  9. सुंदर भाव मन के ....
    ये प्रश्न कई बार उठता है मन में ...!!

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  10. इस शिकायती ख़त पर दस्तखत मैं भी कर रहा हूँ
    शुभकामनायें आपको !

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  11. चौदह वर्ष के विकट काल में
    तुम अकेले वन में न भटको
    तुम्हे साथ देने की खातिर उसने
    सब सुखों का त्याग किया था
    हे राम,
    आखिर क्यों उस अनुगामिनी का
    तुमने यूँ परित्याग किया था?

    The most powerful lines in the poem.
    Keep it on...

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