‘‘आ
मेरे हमजोली आ
खेलें आँखमिचोली आ’’
आप सोच रहे होंगे
मैं इसे क्यों गुनगुना रही हूँ
तो सुनिए...
आँखमिचोली का गेम
खेल रहे हैं दो लोग
एक मैं और एक
मेरे इलाके की बिजली
कभी मैं जीत जाती हूँ
कभी वह जीतती है.
मैं बज़ाप्ता
कम्प्यूटर के पास बैठती हूँ.
ब्लॉगर खोलती हूँ
साइन इन होती हूँ
कभी कोई रचना
पोस्ट करने के लिए
कभी टिप्पणी डालने के लिए
सारे पेज़ खोलती हूँ
लिखना शुरु करती हूँ
अचानक बिजली रानी
ठेंगा दिखाती हुई
गुल हो जाती है
जल्दी जल्दी
खुले पेज समेटती हूँ
मतलब सारी प्रक्रिया बेकार
फिर टकटकी लगाए इन्तेजा़र
फिर महारानी जी पधारती हैं
झट सारे प्रॉसेस दोहराती हूँ
एकाध जगह टिप्पणी डालने में
सफल हो जाती हूँ
विजय भाव से मुस्कुराकर
विजय भाव से मुस्कुराकर
बिजली की ओर देखती हूँ
मानो मैंने गेम जीत लिया न!!
यू पी एस महोदय ने भी
दो टूक कह दिया
मैं इस आँखमिचोली में
साथ नहीं दे सकता
ठीक है भई,
मत दो साथ
मैं नहीं हारने वाली
आँखमिचोली का
यह खेल जारी है
हा हा हा...
आपने भी एनज्वाय किया न...
ऋता शेखर ‘मधु’
आँखमिचोली को बहुत इंजॉय किया ...मजेदार..
जवाब देंहटाएंऋता शेखर मधु जी,,,,,,,अपने यहाँ भी यही हाल है,,,बिजली का,,,,
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
बिजली को धत्ता , वो भी गर्मी में ----- शाबाश !
जवाब देंहटाएंमज़ा आया पढ़ कर
जवाब देंहटाएंसादर
Bahut enjoy kiya is bijlii ki aankh michauli ko...
जवाब देंहटाएं:):) सब जगह यही हाल है
जवाब देंहटाएंकल 15/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
sahi bat ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंhamane bhi enjoy kiya...
:-)
आज कल सभी आँख मिचोली का गेम खेल रहे हैं...बहुत रोचक...
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