शनिवार, 20 अगस्त 2016

कोरे विचार-लघुकथा

कोरे विचार
अनन्या और तुषार दोनो मल्टीनेशनल कम्पनी में इंजीनियर थे| एक प्रेजेंटेशन के दौरान दोनो एक दूसरे से मिले| तुषार को अनन्या अच्छी लगी तो उसने अपने माता पिता को बताया|
आज तुषार के घरवालों ने अनन्या के माता-पिता को बुलाया था|
“हमने अनन्या को अच्छी शिक्षा दी है| अच्छे पैकेज वाली नौकरी भी लगी है उसकी| हमें लगता है लेन देन जैसी कोई बात न होगी| लड़का लड़की ने एक दूसरे को पसंद कर लिया है| हमें पंडित जी से शुभ मुहुर्त निकलवा कर ही जाना चाहिए,” रास्ते में अनन्या की मम्मी बोले जा रही थीं|
तुषार के घर उनके स्वागत में कोई कमी नहीं की गई| बातों का क्रम आगे बढ़ा|
“देखिए, हम लेन देन की बात नहीं कर रहे| दोनों खुश रहें इससे बढ़कर हमें क्या चाहिए| बाकी लड़की को कपड़े, गहने, गाड़ी जो कुछ भी दें उससे हमें कोई मतलब नहीं| बस इंगेजमेंट, शादी और रिसेप्शन टॉप होटल में करें और वह खर्च उठा लें| शादी बार बार नहीं होती तो यह सब यादगार होना चाहिए| वो क्या है न कि तुषार की अच्छी शिक्षा में हमारा बैंक बैलेंस... ”
“बैंक बैलेंस तो हमारा भी...” सोचती हुई बिना दहेज की शादी के कोरे विचार पर हँस दी अनन्या की मम्मी|
--ऋता शेखर ‘मधु’

5 टिप्‍पणियां:

  1. अतिउत्तम दी | दहेज़ का स्वरुप बदल गया है पर ख़त्म नही हुआ है | बेटे बेटी की पढाई पर एक जैसा ही खर्च होता है पर .....

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    1. सच में सुनीता, आज भी अपेक्षा रहती है कि सारे खर्च लड़की वाले ही करें|

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'कजली का शौर्य और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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