लघुकथा- चिपको
नन्हें अतुल का घर बहुत बड़ा था| उस घर में उसके पापा- मम्मी,
दादा- दादी और चाचा रहते थे| बड़े घर का आँगन भी बहुत बड़ा था|
“क्यों न आँगन वाली जमीन में दो कमरे बना दें और किराए पर दे
दें| बेकार ही वहाँ इतनी सारी जमीन पड़ी है,”दादा जी ने सबके सामने यह प्रस्ताव
रखा|
“मगर दादा जी, वहाँ जो अमरूद का पेड़ है उसका क्या करेंगे,” छठी
कक्षा में पढ़ने वाले अतुल ने जिज्ञासा प्रकट की|
“ उसे कटवा देंगे और क्या” अतुल के पापा ने कहा|
“लेकिन पापा, पेड़ नहीं काटना चाहिए| पेड़ हमारे पर्यावरण को
शुद्ध रखते हैं|”
“बड़ा आया पाठ पढ़ाने वाला, काम है तो पेड़ काटना ही पड़ेगा|
तुम अभी बच्चे हो, बाहर जाकर खेलो और हमें अपना काम करने दो,”चाचा ने अतुल को डाँट
दिया|
“जाकर पेड़ काटने के लिए एक मजदूर को बुलाकर ले आओ,” दादा जी ने
बेटे को कहा|
“जी” कहकर अतुल के चाचा बाहर चले गए|
अतुल कमरे में बैठकर सोचने लगा| अचानक क्लास में पढ़ाई गई गौरा
देवी की कहानी उसे याद आ गई| वन में पेड़ों की कटाई रोकने के लिए गौरा देवी के
नेतृत्व में महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो जाती थीं| उनका कहना था कि पहले
उन्हें काटा जाए फिर पेड़ को काटें|चिपको आन्दोलन के बाद सरकार ने पेडों की कटाई
पर रोक लगा दी थी|
आँगन में हलचल बढ़ चुकी थी| पेड़ काटने के लिए शायद मजदूर आ
चुका था| अतुल बाहर निकला और अमरूद के पेड़ से चिपक कर खड़ा हो गया|
“ अरे, यह क्या कर रहे हो अतुल| हटो वहाँ से, पेड़ काटने दो,”
समवेत स्वर में पापा, दादा और चाचा ने कहा|
“नहीं, पेड़ काटने वाले अंकल को बोलिए पहले मुझपर कुल्हाड़ी
चलाएँ,”अतुल ने अडिग स्वर में कहा|
सब खामोश खड़े थे| अतुल की मम्मी जो दूर खड़ी थीं, ने समर्थन
में अतुल को अँगूठा दिखाया|
“पेड़ के दो फीट दूर से नींव की जमीन खोदो”, अचानक दादा जी ने
मजदूर को आदेश दिया|
--ऋता शेखर ‘मधु’
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-09-2016) के चर्चा मंच "मिटा देंगे पल भर में भूगोल सारा" (चर्चा अंक-2477) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति
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