गुरुवार, 15 सितंबर 2016

हर भूले को राह दिखाना बनकर दीपक बाती--ललित छंद

सार/ललित छंद-- 16-12
१.
टिक टिक करती घड़ियाँ बोलीं, साथ समय के चलना
सोने से सो जाते अवसर, मिलता कोई हल ना
नींद देश की सुखद छाँव में, बतियाते हैं सपने
श्रम का सूरज साथ चले तो, हो जाते हैं अपने
२.
अँधियारी रातों में पथ पर, दीपक एक जलाएँ
बन जाए दीपों की माला, ऐसी अलख जगाएँ
हरसिंगार झरे मन आँगन, नभ में बिखरे तारे
चमक रहे बागों में जुगनू, तम दीपक से हारे
३.
दुख के सीले गलियारे से, सुख की गठरी छाँटो
राहों में जो फूल खिले हैं, हँसकर उनको बाँटो
जगत के छल से वह बेखबर,  चुगती रहती दाने
नन्ही सी बुलबुल आँगन में, आती गाना गाने
४.
साँझ ढले पुस्तक पढ़ पढ़ कर, मुनिया राग सुनाती
हर भूले को राह दिखाना, बनकर दीपक बाती
माँ की चुनरी सिर पर डाले, छमछम करती आती
तुतले तुतले बोल बोलकर, बिटिया नाच दिखाती
५.
पावस के पावन मौसम में, जमकर बरसी बूँदें
सूँघ रही माटी की खुश्बू, धरती आँखें मूँदे
वृक्ष विहीन सृष्टि से सुन लो, उसकी करुण कहानी
नीर पेड़ की बरबादी से, छाएगी वीरानी
--ऋता शेखर 'मधु'

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-09-2016) को "अब ख़ुशी से खिलखिलाना आ गया है" (चर्चा अंक-2468) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सभी छंद प्रेरक हैं, सुन्दर हैं. बच्चों को समर्पित कर सकते हैं.
    ..बधाई.

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