सार/ललित छंद-- 16-12
१.
टिक टिक करती
घड़ियाँ बोलीं, साथ
समय के चलना
सोने
से सो जाते अवसर, मिलता
कोई हल ना
नींद देश की सुखद
छाँव में, बतियाते हैं सपने
श्रम
का सूरज साथ चले तो, हो
जाते हैं अपने
२.
अँधियारी रातों में
पथ पर, दीपक
एक जलाएँ
बन
जाए दीपों की माला, ऐसी
अलख जगाएँ
हरसिंगार
झरे मन आँगन, नभ
में बिखरे तारे
चमक
रहे बागों में जुगनू, तम
दीपक से हारे
३.
दुख
के सीले गलियारे से, सुख की गठरी छाँटो
राहों
में जो फूल खिले हैं, हँसकर उनको बाँटो
जगत
के छल से वह बेखबर, चुगती रहती दाने
नन्ही
सी बुलबुल आँगन में, आती गाना गाने
४.
साँझ ढले पुस्तक पढ़
पढ़ कर, मुनिया
राग सुनाती
हर
भूले को राह दिखाना, बनकर
दीपक बाती
माँ की चुनरी सिर पर
डाले, छमछम
करती आती
तुतले
तुतले बोल बोलकर, बिटिया
नाच दिखाती
५.
पावस
के पावन मौसम में, जमकर
बरसी बूँदें
सूँघ
रही माटी की खुश्बू, धरती
आँखें मूँदे
वृक्ष विहीन सृष्टि
से सुन लो, उसकी
करुण कहानी
नीर
पेड़ की बरबादी से, छाएगी
वीरानी
--ऋता शेखर 'मधु'
सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुशील जी !
हटाएंbehtreen saargarbhit rachnaye :)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुनीता :)
हटाएंआभार आपका|
जवाब देंहटाएंसभी छंद प्रेरक हैं, सुन्दर हैं. बच्चों को समर्पित कर सकते हैं.
जवाब देंहटाएं..बधाई.