शनिवार, 10 सितंबर 2016

बेपेंदी का लोटा-लघुकथा

बेपेंदी का लोटा


“वेतनमान के लिए जबरदस्त रैली है| हम सभी कर्मचारियों को उसमें अवश्य भाग लेना चाहिए|”मुकेश वर्मा ने जोशीले स्वर में कार्यालय में सभी कर्मचारियों का आह्वान किया|

“बिल्कुल भाग लेना चाहिए| किन्तु हमलोग काम पर आ चुके हैं और रजिस्टर में उपस्थिति भी दर्ज कर चुके हैं| ऐसे में हमें अपने पदाधिकारी से पूछकर जाना चाहिए| यदि न जाने दें तो सामूहिक अवकाश ठीक रहेगा| हम अवश्य जाएँगे| हमारे अधिकारों का सवाल है,”दिनकर बाबू ने भी ओजपूर्ण शब्दों में हामी भरी|

सभी पन्द्रह कर्मचारी अपने पदाधिकारी के पास पहुँचे और जाने की इजाजत माँगी|
‘नहीं, मैं जाने की इजाजत नहीं दे सकता| जब जाना ही था तो पहले से अवकाश लेना चाहिए था| अब जाने पर मैं कार्यवाई करूँगा,” पदाधिकारी ने कहा|

“सच कहते हैं सर, जब उपस्थिति बन चुकी है तो जाने देना उचित नहीं| आप नियमानुसार ही काम करें,” दिनकर बाबू की यह बदली बदली भाषा देखकर सभी एक दूसरे का मुँह देखने लगे|

जाते जाते सबने सुना,” पेंदी को जाँचे बिना विरोध...हहहहहह”

--ऋता शेखर ‘मधु’

5 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त जी की १२९ वीं जयंती“ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. ऐसे थाली के बैंगन ही बेपेंदे के लोटे होते हैं जो उच्च-अधिकारियों के चरणों में लोटे रहते हैं! अच्छी लघु कथा!

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-09-2016) को "हिन्दी का सम्मान" (चर्चा अंक-2463) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बढ़िया लघुकथा
    Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर मैं और मृदुला प्रधान जी कुछ बातें और धड़कनों की तजुर्मानी:)

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